पावन बंशी बजाने वाले
ललचायें हम यमुना तीरे
प्रकट नहीं क्यों होते ग्वाले
सारे दिन कुंजन वन भटके
दर्शन की हम आस लगाए
व्याकुल सखियाँ, आतुर साथी
याद तेरी हम सबको सताए
सब सूना बिन तेरे छलिया
विरही मन की प्यास बुझा दो
जहाँ कहीं भी छुपे हुये हो
यहाँ पहुँचकर दरश दिखा दो.
- विजय तिवारी ' किसलय '
5 टिप्पणियां:
कान्हा ही कान्हा ..बहुत सुन्दर.
" ati sundar ...bhakti se bharpur "
---- eksacchai {AAWAZ}
http://eksacchai.blogspot.com
भक्ति से परिपूर्ण कविता
सुन्दर रचना .............
वाह !
उत्तम पोस्ट !
सुदर सयोजन के लिए बधाई
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