सोमवार, 20 सितंबर 2010

सब सूना बिन तेरे छलिया

गोकुल के ओ बंशी बजैया
पावन बंशी बजाने वाले
लचायें हम यमुना तीरे

प्रकट नहीं क्यों होते ग्वाले
सारे दिन कुंजन वन भटके
र्शन की हम आस लगाए

व्याकुल सखियाँ, आतुर साथी
याद तेरी हम सबको सताए
ब सूना बिन तेरे छलिया 

विरही मन की प्यास बुझा दो
हाँ  कहीं भी छुपे हुये हो
हाँ पहुँचकर दरश दिखा दो.











- विजय तिवारी ' किसलय '

5 टिप्‍पणियां:

shikha varshney ने कहा…

कान्हा ही कान्हा ..बहुत सुन्दर.

SACCHAI ने कहा…

" ati sundar ...bhakti se bharpur "

---- eksacchai {AAWAZ}

http://eksacchai.blogspot.com

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

भक्ति से परिपूर्ण कविता

Unknown ने कहा…

सुन्दर रचना .............

वाह !

उत्तम पोस्ट !

प्रेम नारायण अहिरवाल ने कहा…

सुदर सयोजन के लिए बधाई