सोमवार, 10 अगस्त 2009

उफ ये कैसे, गरमी के दिन

लगे न शीतल,
भोर सुहानी ।
स्वेद निकल खुद,
कहे कहानी ॥


शाम ढले,
गाँवों में फैले।
धूलि-कणों की,
अलग जुबानी ॥


नींद उड़ाती,
गरम हवायें।
कटती रातें,
तारे गिन ।।


उफ ये कैसे,
गरमी के दिन ॥


शीतल छाया,
भाती सबको ।
धूप सताये ,
दिन में सबको ॥


जीव-जगत,
व्याकुल हो जाता।
तरस नहीं क्यों,
आता रब को ॥


श्रमिकों का श्रम,
बाहर करना।
हो जाता है,
बड़ा कठिन ॥


उफ ये कैसे,
गरमी के दिन ॥


उगले सूरज,
ज्वाला सी जब ।
सूख बिखरती,
हरियाली सब ॥


कूप, नदी,
तालाबों का जल।
हो जाता है,
और दूर तब ॥


वन, उपवन गर,
रहे उजड़ते।
जायेंगी सब,
खुशियाँ छिन ॥


उफ ये कैसे,
गरमी के दिन ॥


- विजय तिवारी " किसलय "

13 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

उमस भरी गर्मी पड़े, मनवा है बेचैन।
वर्षा से ठण्डक मिले, सुख से बीतें रैन।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

सुन्दर रचना है।बधाई।

vandana gupta ने कहा…

garmi ke mausam ka sahi chitran kiya hai........badhayi

Prem Farukhabadi ने कहा…

bahut hi sundar rachnaek dam sahityak
dil se badhai!

shikha varshney ने कहा…

Lagta hai bhaut jyada garmi pad rahi hai vahan ..[:)]..bahut sunder chitran hai Badhai aapko.

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत बढिया रचना .. कुछ दिन आप भी अनियमित थे यहां पर .. मैं तो अनियमित थी ही .. सुदर लेखन के दिए बधाई !!

डॅा. व्योम ने कहा…

गर्मी के मौसम पर केन्द्रित कविता अच्छी लगी। वर्षा नहीं होने से जो हालत सुबह से शाम तक एक आम आदमी की हो रही है उसका अच्छा चित्रण कविता में किया गया है।

श्रद्धा जैन ने कहा…

sach main gamri itni hi kashtdaayi hai

ki subah bhi sheetal nahi lagti

bahut hi sunder rachna

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi achhi rachna

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना ...

shyam gupta ने कहा…

अच्छी भाव पूर्ण व यथार्थ नव-गीत रचना है,बधाई,विजय जी।

Alpana Verma ने कहा…

garami ke dino ka khoobsurat chitran kiya hai.

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

यह कविता भी पूरे भाव से पढ़ी, इसके पूर्व की गई कविता पर टिप्‍पणी भी इसी के लिये रखना चाहूँगा।

''प्रकृति के कवि''