शनिवार, 15 अगस्त 2009

मन में कभी न लायें

जितना बने बड़ों का,
आदर करें - करायें।
बस , गैर को सताना,
मन में कभी न लायें ॥
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हम मानवीय रिश्ते,
जग में सदा निभायें।
बस, दुश्मनी निभाना,
मन में कभी न लायें॥
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रोड़े बनें न मज़हब,
सबको गले लगायें।
बस, भेदभाव करना,
मन में कभी न लायें॥
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बन कर्म के पुजारी,
आगे कदम बढ़ायें,
बस, कर्महीन बनना,
मन में कभी न लायें॥
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हम आसपास अपने,
सच की फसल उगायें,
बस, झूठ लहलहाना,
मन में कभी न लायें॥
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कोशिश, लगन मनुज को,
उपलब्धियाँ दिलायें।
बस, लक्ष्य को भुलाना,
मन में कभी न लायें॥
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हम द्वेष-ईर्ष्या को,
हर हाल में हटायें ।
बस, आपसी बुराई,
मन में कभी न लायें॥
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चहुँओर हम प्रगति का,
अभियान नित चलायें।
बस, स्वार्थलिप्त रहना,
मन में कभी न लायें॥
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"किसलय" महान भारत,
सच में सभी बनायें।
बस व्यर्थ दंभ भरना,
मन में कभी न लायें॥
-००-
- विजय तिवारी " किसलय "

9 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

सकारात्‍मक भावों को लेकर बहुत सुंदर रचना तैयार की है आपने .. इसके बिना सबकी स्‍वतंत्रता और जनहित की कल्‍पना भी नहीं की जा सकती .. बहुत बहुत बधाई आपको !!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुंदर रचना।
स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएँ..
हैपी ब्लॉगिंग।

hem pandey ने कहा…

बन कर्म के पुजारी,
आगे कदम बढ़ायें,
बस, कर्महीन बनना,
मन में कभी न लायें॥
-आपने श्रीमद्भगवद्गीता की सीख सहज शब्दों में दे दी.

"अर्श" ने कहा…

ऐसी निर्मल और कोमल रचनाएँ बहोत ही कम पढने को मिलती है ...थोडा देर से आया हूँ इसके लिए मुआफी चाहूँगा मगर दिल से वाह वाह निकल रहा है बहोत बहोत बधाई और साधुवाद ...


अर्श

shama ने कहा…

http://shama-shamaneeraj-eksawalblogspotcom.blogspot.com/

ये है नया ,ब्लॉग ..एक विचार मंच ! आपके सवालों के इंतज़ार मे !
आपकी ये रचना वाक़ई बड़ी ही सरल और सच्चे इंसान तथा हिन्दुस्तानी के मनसे लिखी गयी है !सुकून मिला मनको..!

e-mail id

shamakavya@gmail.com

Gar aap ispe e-mail karen to aapko " Ek sawal.." ke liye amantrit kar saktee hun..samayanusaar, jab chahen likhe/postkaren...badee khushee aur shukrguzaaree hogee!

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shama ने कहा…

Aapki e-mail ID mere paas nahee hai..isliye comment me likha..

Meree kitab bhej ne ke liye bhee postal address zarooree hai..!

vikram7 ने कहा…

sundae racanaa

Alpana Verma ने कहा…

prernadayi rachna.

marg darshak jaisee.

abhaar.

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आपको संस्‍कार, युवाओं और देशज का कवि कहूँगा, आपकी कविता, दोहे कुछ प्रेरणा दे जाती है। चाहे वह प्रकृति पर हो, युवाओं पर सब जगह कुछ सीख ही मिलती है।