rachna ka prabhav neeche de raha hoon. anyatha na len please.
जहाँ न भगिनी को मिले,निज भ्राता से मान उस भ्राता का घर लगे, जैसे हो शमशान जैसे हो शमशान, भूला अपनी भगिनी को दुष्ट मानव समझा सब कुछ अपनी पत्नी को दिनों दिन बढ़ रहा रिश्तों का अपमान यहाँ कैसे नहीं होगा अपमान चले पत्नी की जहाँ
12 टिप्पणियां:
bahut badhiya likha hai .........bhai bahan ke rishte ko bakhubi bayan kiya hai
bahut badhiya...
Swagat hai badhaiyaan
'जहाँ न भगिनी को मिले,
निज भ्राता से मान ।
उस घर में कहलायेगा,
राखी का अपमान ॥'
- बिलकुल सच.
किसलय जी बधाई।
दोहा बहुत बढ़िया है।
शानदार
apki rachna bahut achchhi lagi.badhai!
rachna ka prabhav neeche de raha hoon. anyatha na len please.
जहाँ न भगिनी को मिले,निज भ्राता से मान
उस भ्राता का घर लगे, जैसे हो शमशान
जैसे हो शमशान, भूला अपनी भगिनी को
दुष्ट मानव समझा सब कुछ अपनी पत्नी को
दिनों दिन बढ़ रहा रिश्तों का अपमान यहाँ
कैसे नहीं होगा अपमान चले पत्नी की जहाँ
bilkul sahi likha hai aap ne.
doha apni baat kahne mein safal hai.
आज के दौर में रक्षा बंधन को कुद संक्रीर्ण विचारों वाले लोगो धागो का सौदा भर कर दिया है, उसी भाव को व्यक्त कर रही आपकी यह लघु कविता।
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