रविवार, 9 अगस्त 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र. ६७]


जहाँ न भगिनी को मिले,
निज भ्राता से मान ।

उस घर में कहलायेगा,
राखी का अपमान ॥
- किसलय

12 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

bahut badhiya likha hai .........bhai bahan ke rishte ko bakhubi bayan kiya hai

समयचक्र ने कहा…

bahut badhiya...

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Swagat hai badhaiyaan

hem pandey ने कहा…

'जहाँ न भगिनी को मिले,
निज भ्राता से मान ।
उस घर में कहलायेगा,
राखी का अपमान ॥'

- बिलकुल सच.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

किसलय जी बधाई।
दोहा बहुत बढ़िया है।

संजीव गौतम ने कहा…

शानदार

Prem Farukhabadi ने कहा…
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Prem Farukhabadi ने कहा…
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Prem Farukhabadi ने कहा…

apki rachna bahut achchhi lagi.badhai!

rachna ka prabhav neeche de raha hoon. anyatha na len please.

जहाँ न भगिनी को मिले,निज भ्राता से मान
उस भ्राता का घर लगे, जैसे हो शमशान
जैसे हो शमशान, भूला अपनी भगिनी को
दुष्ट मानव समझा सब कुछ अपनी पत्नी को
दिनों दिन बढ़ रहा रिश्तों का अपमान यहाँ
कैसे नहीं होगा अपमान चले पत्नी की जहाँ

Alpana Verma ने कहा…
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Alpana Verma ने कहा…

bilkul sahi likha hai aap ne.
doha apni baat kahne mein safal hai.

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आज के दौर में रक्षा बंधन को कुद संक्रीर्ण विचारों वाले लोगो धागो का सौदा भर कर दिया है, उसी भाव को व्‍य‍क्‍त कर रही आपकी यह लघु कविता।