बुधवार, 7 जनवरी 2009

बर्दाश्त की भी हद होती है, चाहे वो आतंकवाद हो या फ़िर शान्तिमार्ग .

"अतिसर्वत्रवर्जयेत " चाहे वो आतंकवाद हो या फ़िर शान्तिमार्ग .
एक श्लोक है ----
खलानां , कण्टकानां प्रतिक्रियाः द्विविधिः
उपानंगो मुखभंगो या दूर ते विसर्जनं

अर्थात खल (साँप या दुष्ट ) और काँटों से निपटने की दो विधियां हैं -
पहला या तो उनके मुँह को अपने जुटे से कुचल दो अथवा उन्हें दूर से ही छोड़ दो.
लेकिन हम तो दोनों विधियों में से किसी एक पर भी अमल नहीं कर रहे हैं.
- विजय

3 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

क्या बात है भाई विजय जी
खल और काँटों से निपटने के लिए दोनों सूत्र बहुत ही अच्छे है . दुश्मन का फन कुचल देना चाहिए और खल को कूटनीति से मारा जाना चाहिए . साम दाम दंड भेद की नीति से बड़े खलनायको को नेस्तनाबूद किया जा सकता है . बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति के लिए आभार
महेंद्र मिश्रा जबलपुर.

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

पकिस्तान के सन्दर्भ में हमारे नेतागण साम दाम और दंड भेद और कूटनीति का उपयोग करना ही नही जानते है .पकिस्तान सचमुच बहुत बड़ा खल है जो पल पल अपने रंग बदल रहा है . ऐसे सांप रूपी दुश्मन का फन कुचलना ही समय की मांग है .

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

बड़े भैया
आशय के अनुरूप आपने अपने
विचार और आक्रोश को प्रर्दशित किया है
आपका
विजय