शनिवार, 8 नवंबर 2008

हरित क्रांति का बिगुल


[ कटाव,कटंगी, जबलपुर ]
कभी ये अपने

देश की धरती,

हरी-भरी

इठलाती थी।

नदी-किनारे,

पर्वत-घाटी,

पवन सुगंध

बहाती थी।


अब न मिलती

शीतल छाया,

वन,उपवन

हो रहे हैं कम,

हरित क्रांति का

बिगुल बजाएं,

आओ सब

मिलजुलकर हम ॥


- विजय तिवारी '' किसलय ''


2 टिप्‍पणियां:

Vivek Gupta ने कहा…

"कभी ये अपने देश की धरती,
हरी-भरी इठलाती थी।
नदी-किनारे, पर्वत-घाटी, पवन सुगंध
बहाती थी।"


सुंदर

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

नमस्कार
अच्छा लगा , आप मेरे करीब हैं.
जबलपुर में रास्ट्रीय नाट्य
समारोह चल रहा है, इस लिए कुछ व्यस्त हूँ.
आगे आपसे विस्तृत चर्चा करूंगा
पुनः धन्यवाद

आपका
विजय