सोमवार, 10 नवंबर 2008

बेवफा का पति


आज सुबह से ही
हमारे पड़ोसी
हो रहे थे परेशान
क्योंकि उनके घर
आए हुए थे
अनचाहे मेहमान

परन्तु उनकी पत्नी
कुछ अधिक ही
खुश लग रही थी
जमीन की छोडिये
हवा में उड़ रही थी

पति यह तथ्य
समझ ही नही पा रहा था
बस मन ही मन
घुटा जा रहा था

आज रोटियों की जगह
पूरियाँ बनाई जा रही हैं
बिना किसी पर्व के
खुशियाँ मनाई जा रही हैं
आज पत्नी बार बार
प्यार जता रही है
गुस्से की जगह
मुस्कराए जा रही है


आज शहर से दूर
सैर पर ले जा रही है
बाग़ में बैठाकर
अपनत्व दिखा रही है
कदाचित
कहीं उलझाए जा रही है


मुद्दतों से प्यार का
प्यासा पति
प्यार की हिलोरों में
खो गया
पता ही न चला
कब सो गया


कुछ ही क्षणों में
वह घड़ी भी आई
जब पत्नी ने
चारों ओर नज़र दौडाई
किसी इशारे ने
उसकी हिम्मत बढाई
तभी उसने
अपना हाथ उठाया
हवा में लहराया
और बड़ी बेरहमी से
अपने ही पति के
सीने में चाकू घुसाया


सोया हुआ पति
कुछ कर ही नहीं पाया
बस, कसाई के
बैल-सा चिल्लाया


यह वही क्षण था
जब अनचाहा मेहमान
अपनी चालाकी पर
बेहद था प्रसन्न
वहीं बेवफा का पति
इन रिश्तों पर
हुआ अवाक
और मरणासन्न .........

- विजय तिवारी " किसलय "

17 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत अच्‍छी तरह लिखा गया है। बधाई स्‍वीकारें।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

yah eh tathy hai
jisakee charchaa ho gai
kintu
un bevafa purushon kee sankhyaa zyaadaa hai jo ki BINA QATIL HUE BEWAFA HAIN

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

आदरणीय
संगीता जी
नमस्कार
आपने मेरी रचना पढ़ी
मुझे बेहद खुशी हुई
सदा यूँ ही स्नेह बनाए रखें
आपका
विजय

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

गिरीश जी

आपने बड़ी समझदारी से
आधुनिक मजनुओं की बात
सबके सामने
लाने का प्रयास किया है
भगवान् उनको सदबुद्धि दे

- विजय तिवारी " किसलय "

समयचक्र ने कहा…

bahut hi jordaar.bhagavaan adhunik majanuo ko saddabuddhi de ye bhi khoob rahi vijay bhai .

36solutions ने कहा…

सीधा प्रहार किया है भाई साहब आपने । कविता में पति को मारकर वर्तमान परिस्थितियों में व्‍याप्‍त चिंतन को जिंदा किया है ।

makrand ने कहा…

bahut sunder likha aapne
humri post bhi tpyaye
regards

पुनीत ओमर ने कहा…

आपने कहा है तो शायद यह भी होता होगा.

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

महेंद्र भैया
नमस्ते

आप मुझ पर
स्नेह वर्षा करते हैं
अच्छा लगता है
कभी कभी कुछ व्यंग्य
लिखने को जी
करता है
इच्छा हुई लिख दिया ,
आपको मेरी बात जमी
शुक्रिया

आपका
विजय

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

भाई संजीव तिवारी जी
नमस्कार
आज बदलते परिवेश में कुछ भी संभव है
जैसे पुरुषों द्वारा भी स्त्रियों पर अत्याचार
के मामले देखने मिलते हैं
हम किसी भी अनैतिक गतिविधियों का विरोध करते हैं,
मेरी रचना तो मात्र एक विसंगति की बानगी है
आपका
विजय तिवारी " किसलय "

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

मकरंद जी
नमस्कार
रचना पढने के लिए धन्यवाद
हम आपके ब्लॉग तक जरूर पहुंचेंगे
आपका
विजय तिवारी '' किसलय '

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

भाई पुनीत ओमर जी
नमस्कार

मैंने मात्र एक पहलू की बात की है
ऐसे मामले देखने और सुनने को
भी मिले हैं
अर्थात असंभव नहीं कहा जा सकता ,
फिर मैंने मात्र संदेश देना चाहा है

आपका
विजय तिवारी '' किसलय

"Nira" ने कहा…

Vijay ji
dono bewafaa ke patr hain purush jayada stree kam, aapki is kavita ne mere soye gham kured
diye hain. maine bhi kisi aziz ko khoya aise hi
kuch halaat mein.

aapki rachna bahut dilke kareeb lagi.
bhadhai

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

नीरा जी
नमस्कार
आपने मेरी रचना " बेवफा का पति "
बड़ी गहराई से पढ़ी, और उस पर
एक यथार्थ टिपण्णी
भी पृष्ठांकित की,
देखिये न , आपने भी
स्वीकार किया है कि
आपके किसी अज़ीज़ के
साथ भी इसी तरह कि घटना घटी है
अपना स्नेह बनाए रखियेगा
आभार
आपका
विजय

अनुपम अग्रवाल ने कहा…

आपके पड़ोस में था कविता में सिमटा दिया
एक कविता में उसी के घर में निपटा दिया
जारी रखें ....

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

anupam jee
saadr abhivandan
aap ne meri rachna padhi , achchha lagaa.
sneh banaye rakhen
aapka vijay

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आज की परिस्थितियों में आपकी कविता जयाज है, चाहे बेवफा का पति हो या पत्नि दोनो से ही आज का समाज ग्रसित है। आये दिन सभ्‍य समाज की ऐसी खबरे पेपरो के किसी कोने पर पढ़ी जा सकती है।