आज सुबह से ही
हमारे पड़ोसी
हो रहे थे परेशान
क्योंकि उनके घर
आए हुए थे
अनचाहे मेहमान
हमारे पड़ोसी
हो रहे थे परेशान
क्योंकि उनके घर
आए हुए थे
अनचाहे मेहमान
परन्तु उनकी पत्नी
कुछ अधिक ही
खुश लग रही थी
जमीन की छोडिये
हवा में उड़ रही थी
पति यह तथ्य
समझ ही नही पा रहा था
बस मन ही मन
घुटा जा रहा था
आज रोटियों की जगह
पूरियाँ बनाई जा रही हैं
बिना किसी पर्व के
खुशियाँ मनाई जा रही हैं
आज पत्नी बार बार
प्यार जता रही है
गुस्से की जगह
मुस्कराए जा रही है
आज शहर से दूर
सैर पर ले जा रही है
बाग़ में बैठाकर
अपनत्व दिखा रही है
कदाचित
कहीं उलझाए जा रही है
मुद्दतों से प्यार का
प्यासा पति
प्यार की हिलोरों में
खो गया
पता ही न चला
कब सो गया
कुछ ही क्षणों में
वह घड़ी भी आई
जब पत्नी ने
चारों ओर नज़र दौडाई
किसी इशारे ने
उसकी हिम्मत बढाई
तभी उसने
अपना हाथ उठाया
हवा में लहराया
और बड़ी बेरहमी से
अपने ही पति के
सीने में चाकू घुसाया
सोया हुआ पति
कुछ कर ही नहीं पाया
बस, कसाई के
बैल-सा चिल्लाया
17 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी तरह लिखा गया है। बधाई स्वीकारें।
yah eh tathy hai
jisakee charchaa ho gai
kintu
un bevafa purushon kee sankhyaa zyaadaa hai jo ki BINA QATIL HUE BEWAFA HAIN
आदरणीय
संगीता जी
नमस्कार
आपने मेरी रचना पढ़ी
मुझे बेहद खुशी हुई
सदा यूँ ही स्नेह बनाए रखें
आपका
विजय
गिरीश जी
आपने बड़ी समझदारी से
आधुनिक मजनुओं की बात
सबके सामने
लाने का प्रयास किया है
भगवान् उनको सदबुद्धि दे
- विजय तिवारी " किसलय "
bahut hi jordaar.bhagavaan adhunik majanuo ko saddabuddhi de ye bhi khoob rahi vijay bhai .
सीधा प्रहार किया है भाई साहब आपने । कविता में पति को मारकर वर्तमान परिस्थितियों में व्याप्त चिंतन को जिंदा किया है ।
bahut sunder likha aapne
humri post bhi tpyaye
regards
आपने कहा है तो शायद यह भी होता होगा.
महेंद्र भैया
नमस्ते
आप मुझ पर
स्नेह वर्षा करते हैं
अच्छा लगता है
कभी कभी कुछ व्यंग्य
लिखने को जी
करता है
इच्छा हुई लिख दिया ,
आपको मेरी बात जमी
शुक्रिया
आपका
विजय
भाई संजीव तिवारी जी
नमस्कार
आज बदलते परिवेश में कुछ भी संभव है
जैसे पुरुषों द्वारा भी स्त्रियों पर अत्याचार
के मामले देखने मिलते हैं
हम किसी भी अनैतिक गतिविधियों का विरोध करते हैं,
मेरी रचना तो मात्र एक विसंगति की बानगी है
आपका
विजय तिवारी " किसलय "
मकरंद जी
नमस्कार
रचना पढने के लिए धन्यवाद
हम आपके ब्लॉग तक जरूर पहुंचेंगे
आपका
विजय तिवारी '' किसलय '
भाई पुनीत ओमर जी
नमस्कार
मैंने मात्र एक पहलू की बात की है
ऐसे मामले देखने और सुनने को
भी मिले हैं
अर्थात असंभव नहीं कहा जा सकता ,
फिर मैंने मात्र संदेश देना चाहा है
आपका
विजय तिवारी '' किसलय
Vijay ji
dono bewafaa ke patr hain purush jayada stree kam, aapki is kavita ne mere soye gham kured
diye hain. maine bhi kisi aziz ko khoya aise hi
kuch halaat mein.
aapki rachna bahut dilke kareeb lagi.
bhadhai
नीरा जी
नमस्कार
आपने मेरी रचना " बेवफा का पति "
बड़ी गहराई से पढ़ी, और उस पर
एक यथार्थ टिपण्णी
भी पृष्ठांकित की,
देखिये न , आपने भी
स्वीकार किया है कि
आपके किसी अज़ीज़ के
साथ भी इसी तरह कि घटना घटी है
अपना स्नेह बनाए रखियेगा
आभार
आपका
विजय
आपके पड़ोस में था कविता में सिमटा दिया
एक कविता में उसी के घर में निपटा दिया
जारी रखें ....
anupam jee
saadr abhivandan
aap ne meri rachna padhi , achchha lagaa.
sneh banaye rakhen
aapka vijay
आज की परिस्थितियों में आपकी कविता जयाज है, चाहे बेवफा का पति हो या पत्नि दोनो से ही आज का समाज ग्रसित है। आये दिन सभ्य समाज की ऐसी खबरे पेपरो के किसी कोने पर पढ़ी जा सकती है।
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