मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

दोहा श्रृंखला (दोहा क्रमांक ८४)

कोई न होता जन्म से, मूरख  या गुणवान .
संस्कार   ही   ढालते,   देव,   दनुज,   इंसान ..









- विजय तिवारी " किसलय "

13 टिप्‍पणियां:

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

achha hai

vandana gupta ने कहा…

वाह्………॥दोहे मे बहुत ही सुन्दर सन्देश दिया है।

Gautam RK ने कहा…

Bahut sudar doha hai Vijay ji...

Apka har doha koi na koi sandesh zaroor deta hai!!!


"RAMKRISHNA"

kshama ने कहा…

Bahut sahi kaha!Sanskar bada mahatv rakhte hain,isme shak nahi..

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत शानदार दोहे हैं विजय जी. इन्हें पुस्तक रूप ज़रूर दीजियेगा.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सही कहा दोहे मे माध्यम से.

SACCHAI ने कहा…

" ek accha sandesh "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

बवाल ने कहा…

वाह वाह किसलय साहब, बड़ी बात कही।

shama ने कहा…

Bahut khoob kaha!

अरुणेश मिश्र ने कहा…

प्रशंसनीय ।

अंजना ने कहा…

दो लाइनो मे बहुत कुछ कह दिया आप ने । बहुत खुब...

suryakant ने कहा…

ek tarah sa sahi to hai par jo janam sa ``babool`` hai wo ``aam`` nahi ho sakata. ya bhi ek satya hai.

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

कुमार जी
आपके विचारों का स्वागत है.
आपने भी बुजुर्गों के बात कही है
' बोया पेड़ बबूल तो आम कहाँ से होय '
फिर भी हम गहराई से सोचें तो जड़ वनस्पति
और चेतन मानव में अंतर करें तो सरलता से समझ सकते हैं कि
मानव को सिखाया जा सकता है लेकिन पेड़ या पत्थर को नहीं,
हाँ इन्हें तराश कर या संवार कर खूबसूरत जरूर बनाया जा सकता है.
मुझे उम्मीद है , आप मेरे विचारों से सहमत अवश्य होंगे...
- विजय