गुरुवार, 19 नवंबर 2009

संतोषी

रल, सरस, मधुमय वाणी से,


................... जिनके हृदय सुशोभित हों।


रो ज खुशी की भोर हो ऐसी,


.................... सबके मन आलोकित हों॥


ग में जन्म मिला है तो हम,


..................... मानव हित के कर्म करें।


ठा नें हम परहित करने की,


..................... कहीं कभी न शर्म करें॥


कु न्दन ज्यों तप-तप कर निखरे,


................... त्यों कर्मों से खुशी मिले।


हते जो " संतोषी " बनकर,


................. उनके तन-मन दिखें खिले॥

- विजय तिवारी " किसलय "

11 टिप्‍पणियां:

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

सरोज ठाकुर जी का समर्पित आपकी पक्तियाँ, दिल को छू गई।

आज आपको पहली बार प्रथम टिप्‍पी दे पाने का सौभाग्‍य प्राप्‍त कर रहा हूँ।

वंदे मातरम्

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

आमीन.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया सबक है!

vandana gupta ने कहा…

bahut hi sundar.

SACCHAI ने कहा…

" bahut hi badhiya dil ko choo gayi sir "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

Alpana Verma ने कहा…

रो ज खुशी की भोर हो ऐसी,
सबके मन आलोकित हों॥
satya vachan.

Jeevan ko uzzawal banane ki seekh aur Sandesh deti hui rachna pasand aayi.

Girish Kumar Billore ने कहा…

Saroj Thakur ke liye sargarbhit rachana hamare liye utkrisht
abhar

jagdish dixit ने कहा…

aaj pratham bar dekha- ati sundar, kaha hai- jab aave santosh dhan sab dhan dhuri saman. dhanyavad.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सरोज ठाकुर जी का समर्पित आपकी पक्तियाँ, दिल को छू गई।

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आपकी यह विधा पढने में काफी अच्‍छी लगती है, बहुत ही अच्‍छी कविता।

Rahul Singh ने कहा…

तन-संतोषी के मन-उल्‍लास का सरोज उत्‍फुल्‍ल रहे.