स रल, सरस, मधुमय वाणी से,
................... जिनके हृदय सुशोभित हों।
रो ज खुशी की भोर हो ऐसी,
.................... सबके मन आलोकित हों॥
ज ग में जन्म मिला है तो हम,
..................... मानव हित के कर्म करें।
ठा नें हम परहित करने की,
..................... कहीं कभी न शर्म करें॥
कु न्दन ज्यों तप-तप कर निखरे,
................... त्यों कर्मों से खुशी मिले।
र हते जो " संतोषी " बनकर,
................. उनके तन-मन दिखें खिले॥
11 टिप्पणियां:
सरोज ठाकुर जी का समर्पित आपकी पक्तियाँ, दिल को छू गई।
आज आपको पहली बार प्रथम टिप्पी दे पाने का सौभाग्य प्राप्त कर रहा हूँ।
वंदे मातरम्
आमीन.
बहुत बढ़िया सबक है!
bahut hi sundar.
" bahut hi badhiya dil ko choo gayi sir "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
रो ज खुशी की भोर हो ऐसी,
सबके मन आलोकित हों॥
satya vachan.
Jeevan ko uzzawal banane ki seekh aur Sandesh deti hui rachna pasand aayi.
Saroj Thakur ke liye sargarbhit rachana hamare liye utkrisht
abhar
aaj pratham bar dekha- ati sundar, kaha hai- jab aave santosh dhan sab dhan dhuri saman. dhanyavad.
सरोज ठाकुर जी का समर्पित आपकी पक्तियाँ, दिल को छू गई।
आपकी यह विधा पढने में काफी अच्छी लगती है, बहुत ही अच्छी कविता।
तन-संतोषी के मन-उल्लास का सरोज उत्फुल्ल रहे.
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