मंगलवार, 20 अक्टूबर 2009

लिख दें ऐसी नई इबारत


भारत के माथे पर दमके, अमन-चैन, समता का चंदन।

जन-जन के अंतस में उपजे, देशप्रेम, निज-भू का वंदन।।


नैतिकता, आदर्श, धर्म को, मन-मंदिर में रखें संजोकर।

वास्तुशिल्प, इतिहास, कलायें, संस्कार हम करें शिरोधर।।


शिक्षारत शत प्रतिशत बच्चे, दक्ष बनें कर कठिन परिश्रम।

चतुर्दिशाओं में विकसित हों, औद्योगिक, तकनीकी उपक्रम।।


मातृभूमि पर मिटने वाले, स्मृतियों के रहें शिखर पर।

कीमत जानें आजादी की, वीरों की गाथा पढ़ सुनकर।।



शासन के हर निर्देशों का, निश्चित हो ऐसा अनुपालन।

लाभ पहुँचता रहे हमेशा, आम आदमी के घर-आँगन।।


देश प्रगति के जज्बातों की, दिल में उठें हिलोरें हर पल।

भारत माता के आँचल में, सरिता बहे खुशी की अविरल।।


आओ लगन और प्रतिभा से, लिख दें ऐसी नई इबारत।

जग के हर कोने-कोने में, जाना जाये मेरा भारत।।

- विजय तिवारी ‘ किसलय ’

7 टिप्‍पणियां:

Alpana Verma ने कहा…

बेहद सुन्दर रचना.
देश के लिए ऐसी शुभ कामना हर भारतीय के मन में हो और हर भारतीय सकारात्मक दिशा में आगे बढे.
बहुत ही शुभ संदेस दिए हैं आप ने अपनी इस रचना में.

vandana gupta ने कहा…

deshbhakti ke jazbe se bharpoor hai rachna.........kash aisa jazba har bhartiye ke dil mein ho.

सदा ने कहा…

देशप्रेम से भरपूर भावमय रचना, बधाई

shikha varshney ने कहा…

DESHPREM SE BHARPUR PRERNADAYAK SUNDER RACHNA .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

देश-प्रेम से ओत-प्रोत इस सुन्दर रचना के लिए,
बधाई और आभार दोनो ही हैं आपके लिए।

बेनामी ने कहा…

congratulations for this poem

Satish and Vinay

बेनामी ने कहा…

Badhai ho badhai
satish and vinay