मंगलवार, 3 मार्च 2009

छटा ऋतुराज ने फ़िर से दिखाई है

टेसुओं के रंग ने,
भीगे हर अंग ने
दिलों की दीवानगी
फिर से बढ़ाई है /
छटा ऋतुराज ने फ़िर से दिखाई है

साथियों के संग ने,
नेह भरी भंग ने /
चाहत चहकने की
फिर से जगाई है //
छटा ऋतुराज ने फ़िर से दिखाई है

तन की उमंग ने,
मन के विहंग ने ,
सपनों की पालकी,
फिर से सजाई है //
छटा ऋतुराज ने फ़िर से दिखाई है

प्रेम रूपी भृन्ग ने,
यौवन के शृंग ने ,
एक नई लीक आज,
फिर से बनाई है //
छटा ऋतुराज ने फ़िर से दिखाई है

अंतस अनन्ग ने,
प्रीत की पतंग ने ,
ऊँचे उड़ने की आस,
फिर से लगाई है//
छटा ऋतुराज ने फ़िर से दिखाई है

बंशी, ढोल, चन्ग ने,
मंजीरे मृदंग ने ,
मस्ती भरी थाप आज
फिर से सुनाई है //
छटा ऋतुराज ने फ़िर से दिखाई है

फागुनी मलन्ग ने,
छिड़ी रंग- जंग ने ,
भाई चारे की फुहार,
फिर से उड़ाई है
छटा ऋतुराज ने फ़िर से दिखाई है

मौसमी तरंग ने,
प्रकृति के ढंग ने ,
सरिता बसंती आज,
फिर से बहाई है //
छटा ऋतुराज ने फ़िर से दिखाई है //

-डॉ विजय तिवारी "किसलय"

3 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

waah waah waah waah..............aaj to padhkar aisa laga jaise fagun ke sare rang ek sath baras gaye hon aur unmein hum sarabor ho gaye hon...........aapne to dil mein phir se holi ki umang jagayi hai...........sach chata rituraaj aur aapki lekhni ne phir se dikha di hai.
aaj to dil ho raha hai bas yahi gungunate rahein.

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सुन्दर .बढ़िया कविता फागुनी रंग में रंगी हुई

समयचक्र ने कहा…

आपकी सुन्दर कविता ने फागुनी रंग में रंग दिया है .....होली का आगाज होते ही टेसू की खूबसूरती देखते ही बनती है . धन्यवाद.