क़र्ज़ माँ का है बड़ा, जानते ये हम सभी
हैं बहुत उपकार इसके, हम न गिन सकते कभी
कष्ट में देखे हमें तो, रोएँ इसके भी नयन
सारे दिन की छोड़िए, रात न करती शयन
आज भी सारे जहाँ का , एक ही मंतव्य है
मातृ सेवा हर युगों का, श्रेष्ठतम कर्तव्य है
ईशभक्ति में न शक्ति, माँ की सेवा में जो है
स्वर्ग न आनंद देता, मातृ सेवा में वो है
अपनी माँ को भूलता जो, वह बड़ा ख़ुदग़र्ज़ है
मातृ सेवा इस जहाँ में , हर मनुज का फ़र्ज़ है
- विजय तिवारी "किसलय"
2 टिप्पणियां:
ईशभक्ति में न शक्ति, माँ की सेवा में जो है
स्वर्ग न आनंद देता, मातृ सेवा में वो है
bahut achchhi lagi kavita. badhaai ho.
matri karz bahut bada hota hai aur wo jaan dekar bhi nhi chukaya ja sakta.
bahut badhiya.............badhyi ho.
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