सोमवार, 17 नवंबर 2008

दोहा- ४

जीवन में ,

देखा नहीं,

जिस को ,

हे अवधूत !


कहिये रिश्ता ,

प्रेम का ,

कैसे हो ,

मजबूत ॥

- किसलय

6 टिप्‍पणियां:

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

सादर प्रणाम सहित
प्रभू से नाता प्रेम का बिन देखे हो जाए !
प्रभुता वश मन बावरा,प्रभुहिं लाख नै पाय!!

"Nira" ने कहा…

namaste vijay ji

dekhoon naa roop koi
naa dekhoon akar.
bandh ankhon se tohe
man mein liyo basaye

bahut acha doha likha hai

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

neera ji, gireesh ji
dhanywaad
- vijay

"अर्श" ने कहा…

aapka bhi sahab andaj khub hai bahot badhaiya piroya aapne bahot khub.....

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

प्रकाश जी
नमस्कार
अच्छा लगता जब कोई स्वरचित पंक्तियों पर अभिव्यक्ति देता है अभिव्यक्ति का नजरिया कैसा भी हो, ये बात अलग है, पर आप से जुड़ना बड़ी बात है आप मुझ से जुड़े हैं ये मेरे लिए सौभाग्य की बात है
आपका
विजय

बेनामी ने कहा…

bahut hi arthpurn dohe hain..badhai swikaaren