रविवार, 16 नवंबर 2008

दोहा- ००३

स्वजनों को मत छोड़िए,

ज्यों नाविक पतवार।

करें हमारी मदद ये,

विपदा की मझदार॥

-किसलय

2 टिप्‍पणियां:

"Nira" ने कहा…

bahut badiya kaha hai

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

आदरणीय नीरा
नमस्कार
आप ने मेरे ब्लॉग में आकर
भले ही दोहा पर टिपण्णी दी हो, लेकिन आए तो
यही मेरे लिए सम्मान है,
वैसे भी आप एक अच्छी साहित्यकार हैं
आपका एक शब्द भी मेरे लिए बहुत कीमती है
धन्यवाद
आपका विजय