शनिवार, 15 नवंबर 2008

दोहा- ००२

गर्व बढाए दूरियाँ,
कलह कराएँ 'बोल'
पापी बनते पुण्य से ,
पहन राक्षसी खोल
-डॉ विजय तिवारी " किसलय "

3 टिप्‍पणियां:

Girish Kumar Billore ने कहा…

अति सुंदर ! गहन विचार मंथन
आभार

Alpana Verma ने कहा…

satya vachan!

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

आदरणीया
अल्पना जी
सादर वंदन
आप मेरे ब्लॉग
तक पहुँची,
बहुत अच्छा लगा ,

इसके पूर्व भी मैं
आपकी रचनाओं
का रसास्वादन
करता रहा हूँ.
उम्मीद है
आपका स्नेह
मिलता रहेगा

" किसलय "
जबलपुर