मंगलवार, 28 अक्टूबर 2008

रात गई- बात गई


कल ईमानदारी और भ्रष्टाचार पर लम्बी-लम्बी

बातें करने वाले कुछ कार्यालयीन मित्रों में आज

किसी प्रकार का परिवर्तन दिखाई नहीं दिया ।

उन में से कोई निजी कार्यवश बाहर गया था ।

कोई गपशप में व्यस्त था अथवा कार्यालयीन

कार्य को छोड़ अन्य कार्य में व्यस्त था ।

शायद सही कहा गया है - रात गई-बात गई ।

- विजय तिवारी ' किसलय '

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