हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर
HINDI SAHITYA SANGAM JABALPUR, MP, INDIA
मंगलवार, 28 अक्टूबर 2008
बचपन
एक शाम सुनसान में ,
चाँद था आसमान में ।
गुम-सुम सा बैठा रहा ,
न जाने किस अरमान में ॥
चलती रही शीतल पवन ,
रात बनी रही दुल्हन ।
शांत नहीं था मेरा मन ,
यादों में बना रहा बचपन ॥
- विजय तिवारी "
किसलय "
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