मंगलवार, 21 अक्टूबर 2008

जिंदगी

दिखाई

दे जाती है

अपने ही घर के

झरोखे से

छत की मुंडेर

सब्जी बाज़ार

किसी दूकान

गली पनघट

किसी मोड़ पर

या फ़िर

किसी बाग़ में

सुमन जैसी

अल्हड़पन की

दहलीज़ को

पार करती

खुशियों भरी

जिंदगी

- डॉ विजय तिवारी "किसलय "

कोई टिप्पणी नहीं: