शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2008

सच्चाई



सच्चाई


कुछ लड़के पेड़ पर लगे आम पत्थरों से तोड़ रहे थे। इसी दौरान आदर्श के एक पत्थर से नजदीकी मकान की खिड़की का कांच फ़ुट गया।
मकान मालिक गुस्से में चिल्लाते हुए लड़कों के पास आया तो सभी लड़के सहमे हुए एक-दूसर की बगलें झांके लगे।
उसके पूछने के पूर्व ही नन्हे आदर्श ने सामने आकर कहा:-
अंकल ! मैंने ही आम तोड़ने के लिए पेड़ पर पत्थर मारा था परन्तु मेरी गलती से आपके मकान की खिड़की का कांच फ़ुट गया। क्या हमें माफ़ नहीं करेंगे अंकल ?
मकान मालिक अनायास सामने आए नन्हे लड़के की निश्चलता और सच्चाई को देखकर कुछ देर सोच में पड़ गया, फ़िर बड़ी सहजता से बोला:- आदर्श बेटे! तुमने सच बोलकर मेरा दिल जीत लिया , क्योकि मुझे सच्चाई से जितना प्रेम है उससे कहीं अधिक झूठ से नफरत है, और बेटे ! जब ये पेड़ कठोर पत्थरों के बदले मधुर फल दे सकते हैं तो क्या मैं इंसान होकर भी तुम नन्हे-मुन्नों को माफ़ नहीं कर सकता ?
- विजय तिवारी " किसलय "
जबलपुर प्र

2 टिप्‍पणियां:

महेंद्र मिश्र.... ने कहा…

bahut badhiya prerak post hai.saty hi jeevan hai .

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

mhendra hbai
sadar namaskaar
aapki sakriyta ki main daad deta hoon.
aap sanskaardhaani ka naam blog world men roshan karen hamaari duaayen aapke saath hain,aapne meri laghukatha schchai padhi achchha laga .
aabhar
aapka vijay