राधा नीर बहाए
व्याकुल बिरहन मन को दुखाए
पलकों में वो रैन बिताए
दिन में डगर निहारे
सबसे पूछे कब आएँगे
बृज अरविंद हमारे
आश् -निराश भरी राधा को
हर सखि धीर बँधाए
राधा नीर बहाए
व्याकुल बिरहन मन को दुखाए
कुंज गलिन में राधा टेरे
आओ कुंज बिहारी
तुम बिन सारी गोकुल सूनी
सूनी "रहस" हमारी
नेह लगाकर सुधि बिसराई
और हो गये पराए
राधा नीर बहाए
व्याकुल बिरहन मन को दुखाए
- डॉ. विजय तिवारी "किसलय"
जबलपुर
2 टिप्पणियां:
bahut sundar . badhai
mitra mahendra jee
aapka sneh hai ki main aapka kripa paatr hoon
dhanywaad sweekaren
aapka
vijay
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