भाई शशांक को जैमिनी का आचार्य सम्मान एवं बीसवीं शताब्दि के साहित्यकार सम्मान के पश्चात लघु कथा के लिए द्वितीय स्थान मिलना गौरव की बात है । भाई प्रदीप को हमारी अशेष शुभ कामनाएँ।
जिन्दगी
सड़क के किनारे चिथडों में लिपटा एक ८ वर्षीय बालक कुत्ते के नवजात बच्चे के साथ फुटपाथ पर खेल रहा था । अचानक कुत्ते का बच्चा सड़क के दूसरी ओर भागा, तेजी से आ रही कार के ब्रेक चरमराये और वह कार के नीचे आते आते बचा । कार कुछ आगे बढ़ी और वापस फुटपाथ पर खड़े उस लड़के के पास आकर रुकी, जिसके पास कुत्ते का बच्चा खडा हुआ था। कार में से एक मेमसाब उतरीं और उन्होंने कुत्ते के बच्चे को उठाकर गोद में लिया एवं कार में जाकर बैठ गईं । कार पुनः अपनी मंजिल की ओर बढ़ गई । फुटपाथ पर उपस्थित लोगों के शब्द थे- कुत्ते के पिल्ले की जिन्दगी बन गई । किंतु उस लड़के की आँखें एकटक जाती हुई कार की दिशा में देख रही थीं और उन आंखों में कुछ सवाल तरल रूप से तैर रहे थे । वे आँखे जैसे कह रही हों - काश ! कुत्ते के बच्चे की जगह कोई उसे गोद में उठाकर ले जाता तो शायद उसकी भी जिन्दगी बन जाती।
-डॉ विजय तिवारी " किसलय "
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें