रविवार, 14 सितंबर 2008

आतंकवाद पर दोहे

मार्मिक अभिव्यक्ति आतंकवाद पर

विश्व शांति के दौर में, आतंकी विस्फोट
मानव मन में आई क्यों, घृणा भरी यह खोट
विकृत सोच से मर रहे, कितने नित निर्दोष
सोचो अब क्या चाहिए, मातम या जयघोष
प्रश्रय जब पाते नहीं, दुष्ट और दुष्कर्म
बढ़ती सन्मति,शांति तब, बढ़ता नहीं अधर्म
दुष्ट क्लेश देते रहे, बदल ढंग और भेष
युद्ध अदद चारा नहीं, लाने शांति अशेष
मानवीय संवेदना, परहित, जन-कल्याण
बंधुभाव और प्रेम ने, जग से किया प्रयाण
मानवता पर घात कर, जिन्हें ना होता क्षोभ
स्वार्थ-शीर्ष की चाह में, बढ़ता उनका लोभ
हर आतंकी खोजता, सदा सुरक्षित ओट
करता रहता बेहिचक, मौका पाकर चोट
पाते जो पाखंड से,भौतिक सुख सम्मान
पोल खोलता वक्त जब, होता है अपमान
रक्त-पिपासू बने जो, आतंकी अतिक्रूर
सबक सिखाता है समय, भूल गये मगरूर
सच पैरों से कुचलता, सिर चढ़ बोले झूठ
इसीलिए अब जगत से, मानवता गई रूठ
निज बल बुद्धि विवेक पर, होता जिन्हें गुरूर
उनके ' पर ' कटते सदा, है सच का दस्तूर
आतंकी हरकतों से, दहल गया संसार
अमन-चैन के लिए अब, हों सब एकाकार
बरपे आतंकी कहर, बिगड़े जग-हालात
अब होना ही चाहिए, अमन-चैन की बात
गहरी जड़ आतंक की, उनके निष्ठुर गात
दें वैचारिक युद्ध से, उन्हें करारी मात
मानव लुट-पिट मर रहा, आतंकी के हाथ
माँगे से मिलता नहीं, मददगार का साथ
मानवता जब सह रही, आतंकी आघात
गाँधीवादी क्रांति से, लाएँ शांति प्रभात
आतंकी सैलाब में, मानवता की नाव
कहर दुखों का झेलती, पाए तन-मन घाव
कोई ना होता जन्म से, अगुणी या गुणवान
संस्कार ही ढालते, देव, दनुज, इंसान
अपराधों की शृंखला, झगड़े और बवाल
शांति जगत की छीनने, है आतंकी चाल
"किसलय" जग में श्रेष्ठ है, मानवता का धर्म
अहम त्याग कर जानिए, इसका व्यापक मर्म

- डॉ. विजय तिवारी " किसलय "
जबलपुर ( म.प्र.)

कोई टिप्पणी नहीं: