वैसे तो जबलपुर कला, संगीत, साहित्य, संस्कृति, धर्म एवं सामाजिक गतिविधियों में आदिकाल से ही अव्वल रहा है. संत विनोवा भावे द्वारा नामित "संस्कारधानी" भारतवासियों के लिए कभी अपरिचित नहीं रही. आदिकाल से ही लगातार जबलपुर के खाते में उपलब्धियों की संख्या गुणोत्तर बढ़ती जा रही है. भारतीय नेपोलियन कहे जाने वाले कलचुरी के कर्णदेव, गौंड वंशीय रानी दुर्गावती, रानी अवंतिबाई, कृष्णायन महाकाव्य के रचयिता एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र, ओशो, महर्षि महेश योगी, हरिशंकर परसाई आदि को कौन नहीं जानता. शहर को अपने पावन-निर्मल-नीर से अभिसिक्त करती पुण्य सलिला माँ नर्मदा लोगों के अंतःकरण और भौतिक शरीर को परिमार्जित करती आ रही है.
ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं प्रेम भाईचारे की भावनाओं से ओतप्रोत ऐसा जबलपुर सभी को भाता है. जबलपुर वासी भी पारखियों की तरह व्यवहार करते हैं. तरह तरह के रत्नों को अपने गले से लगाए रखते हैं. हृदय में बसा लेते हैं. जबलपुर में अल्पावधि के लिए आये लोगों के भी मानस पटल पर जबलपुर अपनी स्थाई जगह बना ही लेता है. मैं ये बात स्वयं नहीं कहता, ये वे लोग आज भी कहते हैं जो एक बार ही जबलपुर क्यों न आये हों. विरासत में मिली इस परम्परा को जबलपुर का प्रबुद्ध समाज आज भी कायम रखे हुए है.
मैंने इन संदर्भित बातों का उल्लेख यूँ ही नहीं किया है. इसकी अहम वजह एक ऐसी सख्सियत है जिसकी विलक्षणता ने मुझे क्या पूरे जबलपुर को अपनी ओर आकर्षित किया. उनका ज्ञान, उनका अध्ययन, उनकी रचना-धर्मिता और उनका मिलनसारी व्यक्तित्व मुझे अलहदा लगा. आपकी अभिव्यक्ति में दृढ़ता, तथ्यों में प्रामाणिकता, भाषा शैली में प्रवाह के साथ-साथ रोचकता हर किसी को भाती है.
लखनऊ विश्वविद्यालय से जीव रसायन में निष्णात यह प्रतिभा वर्तमान में मुख्य परिचालन प्रबंधक, पश्चिम मध्य रेल जबलपुर के रूप में हमारे शहर की शान बढ़ा रही है. विश्व के दर्जन भर देशों की यात्राएँ कर चुके ये रेलवे अधिकारी अब तक ६ विभिन्न विषयक गद्य-पद्य की पुस्तकें लिख चुके हैं. सच, आप की उत्सुकता निश्चित रूप से बढ़ रही होगी कि आखिर ये कौन हो सकते हैं ? तो मैं बड़े फख्र के साथ बताना चाहूँगा कि आप आदरणीय श्री के. एल. पाण्डेय के अतिरिक्त और कोई हो ही नहीं सकते . हिंदी फिल्म- संगीत और विभिन्न रागों के विश्लेषण में आपने जितना परिश्रम और खोज की है वह अभिनंदनीय और विरल है. आपकी शीघ्र प्रकाशित होने जा रही लगभग १२०० पृष्ठ की "हिंदी फिल्म संगीत में राग-तत्त्व " नामक संगीत से सम्बंधित पुस्तक में १९३१ से २०१२ तक की ३००० फिल्मों के लगभग ८००० गीतों में प्रयुक्त रागों का विस्तृत विवरण एवं विश्लेषण समाहित है. हिंदी फिल्म संगीत में राग-तत्त्व विषय पर देश के विभिन्न शहरों में आपकी वृहद्-प्रस्तुतियों को सराहना प्राप्त हो रही है. ये महज इत्तेफाक नहीं है, श्री के. एल. पाण्डेय जी ने स्वर्गीय ठा. शुकदेव बहादुर सिंह जी से संगीत शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त भारतीय शास्त्रीय संगीत का विषद अध्ययन किया है. भारतीय शास्त्रीय, वेस्टर्न क्लासिकल और पुराने हिंदी फिल्म संगीत के संग्रह करने में, श्रवण करने में तथा हिंदी फिल्मों के संग्रह में आपकी विशेष अभिरुचि है. आप के पास अभी तक करीब एक लाख पचास हजार गीतों एवं दो हजार हिंदी फिल्मों के साथ ही २०० अंगरेजी फिल्मों का संग्रह हो चुका है.
(द टाईम्स ऑफ़ इंडिया ,अहमदाबाद में प्रकाशित समाचार ) |
अभी-अभी कुछ दिन पूर्व अहमदाबाद में श्री के. एल. पाण्डेय जी द्वारा "हिंदी फिल्म संगीत में राग तत्त्व" विषय पर दिए गए व्याख्यान एवं प्रस्तुति को वहाँ के प्रबुद्ध श्रोताओं ने तन्मयता से सुना, देखा और सराहा . अखबारों ने भी प्रमुखता से विवरण प्रकाशित किया. श्रोताओं द्वारा किये गए गूढ़ एवं कठिन प्रश्नों के सटीक उत्तर एवं प्रामाणिक समाधान किया.
इस विषय पर आपका कहना है कि यह सब मेरी रूचि, लगन, अध्ययन तथा खोज-बीन का सुफल है कि मैं इतना सब कर पा रहा हूँ. श्री पाण्डेय जी को हमारी शुभकामनाएँ हैं कि वे यूँ ही शिखर की ओर बढ़ते रहें.
प्रस्तुति-
डॉ. विजय तिवारी "किसलय"
जबलपुर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें