शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

ओंकार श्रीवास्तव "संत" की पत्नी स्व. मुन्नी श्रीवास्तव की प्रथम पुण्य तिथि दिनांक २१ अप्रेल २०१२ पर विनम्र श्रद्धांजलि.

आदरणीय ओंकार श्रीवास्तव जी
 २१ मई १९७१ को
 आदरणीया मुन्नी श्रीवास्तव को
 ब्याह कर अपने घर लाये.























 जीवन भर स्नेह, मान, मर्यादा का ध्यान रखते हुए
 सुख- दुःख के हर पल साथ- साथ बिताए. 
इनकी खुशियों में सदैव चार चाँद लगे रहे. 
पति के हर दुःख-सुख के क्षणों में 
आदरणीया मुन्नी श्रीवास्तव
 छाया की तरह साथ रहीं. 


















२७ दिसंबर २०१० को पति की खुशियों में बराबर की
 भागीदारी करते आप स्वयं देख सकते हैं. 






















अनायास अल्प बीमारी के चलते दिनांक २१ अप्रेल २०११ को 
नियति के आदेश पर ओंकार जी को अपनी स्मृतियों 
का पिटारा सौंप कर स्वर्गारोहण कर गईं. 















ओंकार जी उनकी स्मृतियों में डूबे आज जब मुझे दिखाई दिए
 तो मैं भी एक बारगी उनकी तल्लीनता देखता रह गया,
 मुझे लगा जैसे उन्हें दीन-दुनिया का होश ही नहीं था.
















 ओंकार जी अपनी पत्नी आदरणीया मुन्नी श्रीवास्तव के
 छाया चित्रों को बड़ी तनमयता से देखे जा रहे थे. 
















मैं उनसे कुछ छाया चित्र अपने साथ ले आया. 
और अपने शब्दों के माध्यम से उन्हें 
श्रद्धांजलि दे रहा हूँ:-


तुम बिन सूना मेरा जीवन 


कभी चहकता था जो आँगन, तुमको निज आँचल में पाकर 
कभी तुम्हारे धूप-दीप से, रहा सुवासित जो पूजाघर 
किया इन्हीं दृश्यों से नित ही, मेरी खुशियों में उन्मीलन 
लेकिन अब परिचित जग में भी, तुम बिन सूना मेरा जीवन 


जब तक मेरे अरमानों की, आस्तीन में साँप पले थे 
तब तक मेरी छाया बन तुम हर पग मेरे साथ चले थे 
सदा सफलता पाई हमने, राह भले थी दुर्गम-निर्जन 
है तो अब आबाद राह, पर, तुम बन सूना मेरा जीवन 


कर्मक्षेत्र की उत्प्रेरक तुम, सुख-दुःख की थीं सहभागी 
निज सुचिता से मुझे बनाया, निस्पृह मानव अनुरागी 
साथ तुम्हारे जीकर जाना, क्यों होता है श्रेष्ठ बड़प्पन 
हिय में भरी मनुजता फिर भी, तुम बिन सूना मेरा जीवन 


करूँ भला क्या? बिना तुम्हारे, क्षीण हुई इच्छाएँ सारी 
पर सौंपे दायित्व तुम्हारे, हुए "मृत्युभाव" पर भारी 
इसीलिये मैं संकल्पित हूँ, चलने सत्पथ पर आजीवन 
फिर भी आती बात जुबां पर, तुम बिन सूना मेरा जीवन 


बनी प्रेरणा स्रोत हमारी, वर्तमान की गति पहचानी 
अपनी मेधा, श्रम, विवेक से, रिश्त्तों की नई गढ़ी कहानी 
ऐसे ही  विरले लोगों का, दुनिया करती है अभिनन्दन   
पर  मेरे  अंतस से निकले , तुम बिन सूना मेरा जीवन 


- विजय तिवारी "किसलय"