गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011

जनाब अनवारे इस्लाम के सात दोहे


मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के जनाब  अनवारे इस्लाम बड़े अदब से लिया जाने वाला एक ऐसा नाम है, जो उर्दू और हिंदी साहित्य की गंगा-जमुनी विधा को एक साथ पिरोये हुए है.  आप  द्वैमासिक हिंदी-उर्दू की साहित्यिक पत्रिका के माध्यम से साहित्य की सेवा में निरंतर  लगे हुए हैं. आपकी चाहे गज़लें हों, दोहे हों अथवा गद्य-पद्य का लेखन हो, हर रचनाओं में समाज  से  जुड़ाव  के साथ साथ समाज की विद्रूपताओं का खुलासा दिखाई देता है.  आपकी रचनाओं में विचारशीलता भी  स्पष्ट दिखाई पड़ती है. 

 आज हम आदरणीय अनवारे इस्लाम के सात  दोहे आपके  समक्ष प्रस्तुत  कर  रहे हैं:-  


गुलदानों को फ़िक्र है, सूख गए क्यों फूल.
अलमारी   हैरान सी,  अन्दर   तक   है  धूल..

बंजारा   जीवन मिला,   टूटी नहीं   थकान.
नीड़ लिए हम चोंच में,  भरते रहे उड़ान..

जीने  की  है  लालसा,  जिद्दी  मिरा  सुभाव.
जीवन गहरी झील है, मैं कागज़ की नाव..

सूरज ने इतना पिया, सूख गए सब ताल.
पड़े   हुए  हैं   रेत  पर,  मछुआरों   के   जाल..

नींद न आई रात भर, खटकी एक-इक बात.
सर पर दिन का कर्ज था, खूब चुकाया  रात..

कब तक करें मनौतियाँ, कब तक फूल चढ़ाएँ.
विश्वासों     के    रेशमी,    धागे   टूट    न    जाएँ..

नाप   रहे हैं  रास्ते,  धूप  में  नंगे  पैर.
बैठे हैं जो छाँव में, या रब उनकी खैर..













-विजय तिवारी "किसलय"


4 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बंजारा जीवन मिला, टूटी नहीं थकान.
नीड़ लिए हम चोंच में, भरते रहे उड़ान..

बेजोड़...अनवारे इस्लाम साहब को पढना एक सुखद अनुभव है

नीरज

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
सुना है बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) ने कहा…

बेटी बचाओ - दीवाली मनाओ.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.

समय चक्र ने कहा…

दीपपर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ...