बुधवार, 16 मार्च 2011

लूटकर खुशियाँ हमारी, क्या मिला तुझको सुनामी ?


जलजला    के   बीच  आई,  तू   लहर   कैसी    सुनामी.
लूटकर खुशियाँ हमारी, क्या मिला तुझको सुनामी ?

वे   जहाँ    रहते थे   निर्भय,
गोद   माता   की     समझकर.
काल   उनकी   तू     बनी  जो,
कर सके न कुछ सम्हलकर..

नाव जीवन की  डुबोने, क्यों   प्रलय पतवार थामी ?
लूटकर खुशियाँ हमारी, क्या मिला तुझको सुनामी ?

सिन्धु तट पर जो खड़े थे,
'जन'  'महल'  'घर'   'झोपड़े'.
आ  सके  न काम  उनके,
स्वर्ण,       चाँदी,      रोकड़े..

बह   गए   सब   जीवधारी,   छोटे-बड़े,    नामी-गिरामी.
लूटकर खुशियाँ हमारी, क्या मिला तुझको सुनामी ?

प्राकृतिक      हर   आपदा,
आती    कभी न बोलकर.
दे मदद   इस त्रासदी में,
सारा जहाँ दिल खोलकर..

आएगी   फिर   से वहाँ के, सर्द    चेहरों   पर ललामी.
लूटकर खुशियाँ हमारी, क्या मिला तुझको सुनामी ?
=०=


-विजय तिवारी "किसलय"

11 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

प्रकृति माँ का रूठना ..... बहुत दर्दनाक है....
संवेदनशील रचना .... वहां के लोगों के लिए हार्दिक संवेदनाएं

Udan Tashtari ने कहा…

दर्दनाक हादसे पर संवेदनशील रचना के लिए साधुवाद स्वीकारें.

Sunil Kumar ने कहा…

बहुत दर्दनाक ,संवेदनशील रचना, साधुवाद ....

vandana gupta ने कहा…

बेहद संवेदनशील और मार्मिक रचना………यही किसी का वश नही चलता।

PAWAN VIJAY ने कहा…

ये सुनामी प्रकृति का प्रत्युत्तर है कृपया इसकी भाषा समझने की चेष्टा करे मानव के द्वारा किये जाने वाले कुकृत्यों को क्यों भूलते है
--

Sushil Bakliwal ने कहा…

उत्तम सम्वेदनात्मक प्रस्तुति...

बाबुषा ने कहा…

very touching !

I too have scribbled something on the same subject. please have a look.

http://baabusha.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

Nihsabd hai hum.

---------
ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का विनम्र प्रयास।

Dr Varsha Singh ने कहा…

संवेदनशील रचना प्रस्तुत करने के लिये.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत संवेदनशील गीत ...

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

सुनामी की विभीषिका का मार्मिक चित्रण .....
प्रभावित जन-समुदाय के प्रति संवेदनाएं........
पर्यावरण पर मेरे विचार कुछ ऐसे----------
जंगल का नाश हुआ ,गायब पलाश हुआ
सेमल ने दम तोड़ा,आम भी निराश हुआ
चोट लगी वृक्षों को, घायल आकाश हुआ
बादल भी रो न सका- इतना हताश हुआ
प्रश्न एक भविष्य का-ज्वलंत नजर आता है
अब तो बसंत का बस- अंत नजर आता है.