रविवार, 24 अक्तूबर 2010

विवेचना जबलपुर : एक विहंगावलोकन - १९९४ से लगातार शिखरोन्मुखी सफ़र.

विवेचना द्वारा सन् 1994 से राष्ट्रीय नाट्य समारोह का आयोजन शुरू किया गया है। विवेचना का नाट्यदल पूरे देश में जाकर नाटकों का मंचन करता है। विवेचना के नाटकों के नियमित मंचन होते रहते हैं पर जबलपुर में ऐसे अवसर कम आते हैं जब दर्शक दूसरी संस्थाओं और निर्देशकों के नाटक देख सकें। विवेचना के द्वारा शुरू किये गये राष्टीय नाट्य समारोह के कारण जबलपुर और आस पास के शहरों कस्बों के रूचिसंपन्न दर्शकों को देश के प्रमुख निर्देशकों के नाटक देखने को मिले। इससे उन्हें देश के नाट्य संसार का परिचय मिला। विवेचना के अब तक आयोजित समारोहों में सर्वश्री हबीब तनवीर, बा.व.कारंत, बंसी कौल, सतीश आलेकर, जुगल किशोर, तनवीर अख्तर, दिनेश खन्ना, नादिरा बब्बर,दर्पण मिश्रा, अरूण पांडेय, उषा गांगुली, देवेन्द्र पेम, अरविंद गौड़, पियूष मिश्रा, रंजीत कपूर, नवीन चौबे, अनिलरंजन भौमिक, संजय उपाध्याय, इप्टा भिलाई श्रवण कुमार, वेदा राकेश, नजीर कुरैशी, बलवंत ठाकुर, के.जी.त्रिवेदी , भूषण भट्ट, जावेद जैदी, श्रीमती गुलबर्धन, अलखनंदन, लईक हुसैन, कमलेश सक्सेना, पंकज मिश्रा, विजय कुमार, अजय कुमार, विवेक मिश्रा, अशोक राही, वसंत काशीकर, श्यामकुमार, किशोर कुलकर्णी , दिनेश ठाकुर, जे पी सिंह अतुल पटेल, मानव कौल, एम सईद आलम महमूद फारूखी के नाटक मंचित हो चुके हैं। विवेचना के विभिन्न समारोहों में नादिरा बब्बर, सरिता जोशी, आशीष विद्यार्थी , सुनील सिन्हा, नेहा शरद, टॉम आल्टर जूही बब्बर आदि अपने अभिनय का जलवा बिखेर चुके हैं।

विवेचना का पहला नाट्य समारोह बहुभाषी था। इसमें हिन्दी के अलावा मराठी और बंगला के नाटक भी आमंत्रति किए गए। पर बंगाली दर्शकों के उत्साह प्रदर्शन में कमी के कारण बंगला नाटकों का मंचन संभव नहीं हुआ। सतीश आलेकर का नाटक महानिर्वाण पूना की टीम के उत्साहवर्धक सहयोग के कारण संभव हो पाया। पहले नाट्य समारोह का उदघाटन स्व हबीब तनवीर ने किया। समारोह में हबीब साहब ने देख रहे हैं नैन का मंचन किया। यह मंचन आज भी दर्शकों को याद है। दूसरे दिन बंसी कौल के निर्देशन में वह जो अक्सर झापड़ खाता है का मंचन हुआ। नाटक बंसी कौल की डिजायन के कारण यादगार रहा। यह इस नाटक का पहला प्रदर्शन था जो अपेक्षित प्रशंसा नहीं बटोर सका। तीसरे दिन बा व कारंथ के निर्देशन में श्रीराम सेण्टर , दिल्ली के कलाकारों ने बाबूजी का मंचन किया। इसमें राजेश तिवारी ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। उनका अद्भुत अभिनय दर्शकों को बहुत भाया। बाबूजी के मंचन ने धूम मचा दी और पहले समारोह का यह नाटक दर्शकों की भारी उपस्थिति के कारण भी याद किया जाएगा। चौथे दिन महानिर्वाण का मंचन हुआ था। पूना के कलाकारों ने नायाब प्रस्तुति दी। हालांकि मराठी दर्शकों की उपस्थिति बहुत कम थी।

विवेचना के एक साथी ने मुंबई में नादिरा बब्बर का एक नाटक बात लात की हालात की देखा। उनका ब्रोशर लाए। नादिरा जी से बात की गई । वो जबलपुर आने को सहर्ष तैयार हो गईं । दूसरे समारोह में उनके दो नाटक हुए। बात लात की और संध्या छाया। इन नाटकों ने जबलपुर में धूम मचा दी। और इसी के साथ नादिरा जी का जबलपुर बार बार आना तय हो गया। तीसरे समारोह के समय विवेचना का गोआ दौरा हुआ। वहाँ उषा गांगुली अपने दल के साथ आई हुईं थी। उनसे बात हुई । परिणामस्वरूप तीसरे नाट्य समारोह में उषा गांगुली के दो नाटक हुए। रूदाली और कोर्ट मार्शल । इसी समारोह की एक और उपलब्धि थी फिरोजखान निर्देशित नाटक आल द बेस्ट। इस नाटक नेदर्शकों को हँसा हँसा के लोटपोट कर दिया। यह अकेला नाटक तरंग प्रेक्षागृह में हुआ था।

इस दौरान नाट्य समारोह की दर्शक  संख्या बढ़ चुकी थी। इसीलिए चौथे समारोह के समय राष्टीय नाट्य समारोह का आयोजन शहीद स्मारक से उठकर मानस भवन आ गया। इस साल सन् 1997 में हबीब तनवीर का नाटक वसंत ऋतु का अपना कामदेव का सपना नाटक मंचित हुआ। इसी साल पहली बार अरविंद गौड़ का नाटक फाइनल साल्यूशंस मंचित हुआ। सन् 1998 में पांचवे   समारोह में अरविंद गौड़ का नाटक एक मामूली आदमी बहुत पसंद किया गया वहीं नादिरा बब्बर के नाटक दिल ही तो है ने अपार प्रशंसा पाई । इसी वर्ष  अनिलरंजन भौमिक, इलाहाबाद का नाटक मंथन पहली बार जबलपुर में हुआ। छठवें समारोह में पहले दिन अरूण पांडे निर्देशित नाटक और अंत में प्रार्थना  में आर एस एस के लोगों ने हमला कर दिया और बम फोड़े, कुर्सियाँ चलाईं  । इस सबके बावजूद दर्शक  रूके रहे और नाटक पूरा हुआ। विवेचना के कलाकारों के इस दमखम और समर्पण  की बहुत तारीफ हुई। इसी साल नादिरा बब्बर का बहुत लोकप्रिय  नाटक सकुबाई  हुआ।

सातवें समारोह की खासियत यह रही कि यह समारोह तरंग में आयोजित हुआ। इसमें बलवंत ठाकुर के बच्चों के नाटक आप हमारे हैं कौन ने अद्भुत रंग जमाया। इस साल नादिरा बब्बर के नाटक संध्या छाया का दूसरा मंचन हुआ। पहली बार सन् 1995 में यह नाटक हो चुका था। इसी साल दयाशंकर की डायरी का मंचन हुआ जिसमें आशीष विद्यार्थी का एकल अभिनय था। इस नाटक की इतनी प्रशंसा हुई  कि दूसरे दिन शाम को इस नाटक का दूसरा मंचन आयोजित हुआ। आठवाँ  राष्ट्रीय नाट्य  समारोह 2001 फिर वापस मानस भवन में आयोजित हुआ। इसमें दो महत्वपूर्ण नाटक मंचित हुए।दर्पण  मिश्रा के निर्देशन  में शेर अफगन जिसमें सुनील सिन्हा ने कमाल का अभिनय किया था। अरविंद गौड़ का नाटक वारेन हेस्टिंग्ज का सांड़ बहुत सराहा गया। इसे देखने के लिए उच्च न्यायालय के अनेक न्यायाधीश आए। नवमें समारोह में सन् 2002 नाट्य समारोह पुन: तरंग प्रेक्षागृह पहुँच  गया और तबसे अब तक वहीं आयोजित हो रहा है। इस समारोह में लिटिल बैले टुप का बैले पंचतंत्र मंचित हुआ। इसी समारोह में नादिरा बब्बर का नाटक बेगम जान मंचित हुआ जो बहुत सराहा गया।

दसवाँ समारोह 2004 में हुआ जिसमें बलवंत ठाकुर का बच्चों का दूसरा नाटक उसके हिस्से की धूप कहाँ है के मंचन ने दर्शकों को गहरे तक प्रभावित किया। इसी समारोह में अरविंद गौड़ का नाटक माधवी जिसमें राशि बनी का एकल अभिनय था बहुत सराहा गया। 2005 में हुए ग्यारहवें राष्टीय नाट्य समारोह में विजय कुमार का नाटक ये आदमी ये चूहे मंचित हुआ। अनिल रंजन भौमिक इलाहाबाद का नाटक बाल भगवान आज भी याद किया जाता है। इस समारोह में अजय कुमार का नाटक बड़ा भांड़ तो बड़ा भांड़ प्रभावशाली था। 2006 में हुए बारहवें समारोह में जयपुर का नाटक चंपाकली का राम रूपैया बहुत भाया वहीं देवेन्द्रराज अंकुर का नाटक संक्रमण पहली बार मंचित हुआ। तेरहवें समारोह में सन् 2006 में विवेचना का नाटक मायाजाल मंचित हुआ। इस साल रिकार्ड सात नाटक मंचित हुए। इसमें देवेन्द्रराज अंकुर का नाटक हमसे तुमसे प्यार करेगा कौन और अनिल भौमिक का नाटक असमंजस बाबू बहुत चर्चित हुए। असमंजस बाबू का शो रविवार की सुबह 10 बजे रखा गया और भारी संख्या में दर्शक आए।

चौदहवाँ समारोह 2007 में आयोजित हुआ जिसमें पहले दिन विवेचना का नाटक मानबोध बाबू मंचित हुआ। इस समारोह में पहली बार दिनेश ठाकुर की भागीदारी हुई । उनका नाटक हम दोनों दर्शकों को बहुत पसंद आया। इसी समारोह में जे पी सिंह दिल्ली का नाटक अर्जेंट मीटिंग भी अच्छा जमा। पंद्रहवाँ समारोह 2008 में आयोजित हुआ जिसमें विवेचना का नाटक सूपना का सपना मंचित हुआ। पहले और दूसरे दिन मानव कौल के दो नाटक इल्हाम और शक्कर के पाँच दाने मंचित हुए। दूसरे दिन अलखनंदन का नाटक चारपाई और चौथे दिन अरविंद गौड़ का नाटक अनसुनी मंचित हुआ। अंतिम दिन सुबह 10 बजे आपरेशन थ्री स्टार का मंचन हुआ। विवेचना का सोलहवाँ राष्टीय नाट्य समारोह 2009 में आयोजित हुआ जिसमें विवेचना का नाटक मित्र पहले दिन मंचित हुआ। दूसरे दिन महमूद फारूखी की दास्तानगोई हुई । तीसरे दिन बंसी कौल का नाटक तुक्के पे तुक्का मंचित हुआ। चौथे दिन टॉम आल्टर का नाटक मिर्ज़ा गालिब मंचित हुआ। पांचवें और अंतिम दिन रंजीत कपूर का नाटक अफवाह मंचित हुआ।

विवेचना का सत्रहवाँ नाट्य समारोह आगामी 27 अक्टूबर से 31 अक्टूबर 2010 तक आयोजित है। इसमें पहले दिन विवेचना का नया नाटक मौसाजी जै हिन्द मंचित होगा। दूसरे दिन त्रिपुरारी शर्मा के निर्देशन में रूप अरूप का मंचन होगा। तीसरे दिन बलवंत ठाकुर का नाटक घुमाई मंचित होगा। चौथे दिन हबीब तनवीर का नाटक चरण दास चोर मंचित होगा। अंतिम दिन नादिरा बब्बर का नाटक यार बना बडी मंचित होगा।
आलेख एवं परिकल्पना- विवेचना.

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