गुरुवार, 26 अगस्त 2010

दोहा श्रृंखला (दोहा क्रमांक- ८९)

अपने ही
जब तोड़ते,
अपनों का
विश्वास.

दुनिया में
तब गैर से ,
कौन करेगा
आस ...

-विजय तिवारी
  " किसलय "

7 टिप्‍पणियां:

shikha varshney ने कहा…

waah kya baat hai betareen.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सही कहा!

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सटीक !!

chutka jagrati manch narayanganj covenor-jai prakash pandey ने कहा…

na aas hai ,
na pas hai ,
phir bhi ,
tum par visvas hai,

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बिलकुल सही ....लेकिन आज कल कभी कभी गैर फिर भी काम आजाते हैं ...

समयचक्र ने कहा…

बिलकुल सही ....

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

bahoot sahi farmaya aapne