देखा बचपन से मैंने जो,
वही नेह जीवन भर रखना.
कीमत क्या ? "कच्चे-धागे" की,
नंदित हो उसका फल चखना..
दम्भ कभी न उपजे मन में,
नम्र भाव हो सबके दामन.
चहके ख़ुशी सभी चेहरों पर,
तुलसी जैसे घर हों पावन..
रखूँ सुवासित अपने हिय में,
वेणी हो फूलों की जैसे.
दीप्त रहे रिश्तों का दीपक,
सुख-दुःख बीच न आयें पैसे..
धागा बाँध करें हम बहनें,
दीर्घायु के दुआ हमेशा.
क्षिति से नभ तक गर्वित होता,
तब " राखी " का रेशा-रेशा..
-----०००००----
- विजय तिवारी " किसलय "
4 टिप्पणियां:
विजय भाई.
राखी के महत्त्व पर सुन्दर प्रेरक सन्देश देती बेहतरीन रचना अभिव्यक्ति..... टीप के लिए धन्यवाद.
धागा बाँध करें हम बहनें,
दीर्घायु के दुआ हमेशा.
क्षिति से नभ तक गर्वित होता,
तब " राखी " का रेशा-रेशा..
Aprateem bhaav!Meri to aankh nam ho aayi!
दीप्त रहे रिश्तों का दीपक,
सुख-दुःख बीच न आयें पैसे..
बहुत सुन्दर रचना.
भाई बहन के पावन रिश्ते पर आपके उदगार ह्रदय को भिगो गये………………आभार्।
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