बुधवार, 18 अगस्त 2010

राखी

इस कविता में एक बहन अपने भाई से स्नेह बनाये रखने, भाई के घर की खुशियों और भाई के दीर्घायु रहने  की आकांक्षा रखते हुये  राखी के  महत्त्व का चित्रण करती है  कविता के रूप में पत्र  की भावनाओं   का रसास्वादन लें----

देखा बचपन से मैंने  जो,
वही नेह जीवन भर रखना.

कीमत क्या ? "कच्चे-धागे" की,
नंदित हो उसका फल चखना..

दम्भ कभी न उपजे मन में,
नम्र भाव हो सबके दामन.

चहके ख़ुशी सभी चेहरों पर,
तुलसी जैसे घर हों पावन..

रखूँ सुवासित अपने हिय में,
वेणी हो फूलों की जैसे.

दीप्त रहे रिश्तों का दीपक,
सुख-दुःख बीच न आयें पैसे..

धागा बाँध करें हम बहनें,
दीर्घायु के दुआ हमेशा.

क्षिति से नभ तक गर्वित होता,
तब " राखी " का रेशा-रेशा..
      -----०००००----















- विजय तिवारी " किसलय "

4 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

विजय भाई.
राखी के महत्त्व पर सुन्दर प्रेरक सन्देश देती बेहतरीन रचना अभिव्यक्ति..... टीप के लिए धन्यवाद.

kshama ने कहा…

धागा बाँध करें हम बहनें,
दीर्घायु के दुआ हमेशा.

क्षिति से नभ तक गर्वित होता,
तब " राखी " का रेशा-रेशा..
Aprateem bhaav!Meri to aankh nam ho aayi!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

दीप्त रहे रिश्तों का दीपक,
सुख-दुःख बीच न आयें पैसे..
बहुत सुन्दर रचना.

vandana gupta ने कहा…

भाई बहन के पावन रिश्ते पर आपके उदगार ह्रदय को भिगो गये………………आभार्।