गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

सन ६५ से ८२ तक अपनी पत्रिका " शताब्दी " निकालने वाले श्री ठाकुर साहब से आज भी समाज और सरकार की दूरी आज की विडंबना ही कही जायेगी! - जन्मदिवस पर विशेष


आदरणीय श्री ओंकार ठाकुर जी का नाम आते ही हमेशा मेरे जेहन में एक ऐसी तश्वीर खिच जाती है, जिस पर मन- मस्तिष्क एकाग्रता से चिंतन करने लगता है. आज के युग में ठाकुर साहब जैसे इंसान विरले ही मिलेंगे जो आज भी भारतीय परम्परायें, रीति-रिवाज़, मान-मर्यादा और सादगी की मिसाल कायम किये हुए हैं. मैं उनमें सदैव अपने पारिवारिक सदस्य का स्वरूप देखता हूँ . सादगी की पराकाष्ठा के पर्याय श्री ठाकुर साहब का लेखन और अध्ययन जितना गहराई लिए हुए है, उनका व्यक्तित्व उतना ही सरल और भोलापन भरा है. उनकी निश्छल बातें और व्यवहार कभी कभी उन्हें इस भौतिक आडम्बर भरी दुनिया से कई सदी पीछे ले जाता है.

एक निश्चित दिनचर्या, संतुलित भोजन, भौतिकता से कोसों दूर उनका जीवन आज के जमाने में यदा- कदा ही देखने को मिलेगा. एक अच्छे इंसान के समस्त गुणों के होते हुए महत्वाकांक्षा उन्हें कभी स्पर्श नहीं कर पायी. विज्ञान से स्नातकोत्तर डिग्री, हिंदी और अंगरेजी पर समानाधिकार रखने के बाद भी उन्होंने कभी स्वयं को विशिष्टता की श्रेणी में नहीं गिना. गद्य, पद्य और पत्रकारीय अनुभव को कभी भुनाया नहीं, न ही उसका गलत प्रयोग किया . महल, प्रासाद या आलीशान बंगले की जगह उन्हें अपना छोटा सा नीड़ ही सदा भाया है. सुबह जल्दी उठना, समाचार पढना-सुनना, टहलने निकलना. दोपहर में आज भी लिख- पढ़ कर ज्ञान बढ़ाना उनका शौक कहा जा सकता है. शाम को अपने मित्रों से मिलना, सामाजिक और साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न रहना उनकी इच्छा रहती है.

आज दिनांक १५ अप्रेल २०१० को अपने जीवन के ७६ वर्ष पूर्ण करने के बाद भी मैं विगत २० वर्ष से उनकी उपरोक्त दिनचर्या ही देख रहा हूँ.

कभी किसी से कोई अपेक्षा नहीं, किसी से ईर्ष्या नहीं, और न ही किसी किस्म के दुर्व्यसन . एक सच्चे इंसान जिनका अनुशरण करना हमारा नेक राह पर चलना कहलायेगा. हर किसी से अपनत्व के साथ मिलने वाले ठाकुर साहब के लिए " प्रेम " सबसे बहुमूल्य चीज है, उनकी ये अभिलाषा स्पष्ट देखी जा सकती है. मैंने उन्हें बड़े नज़दीक से देखा है, उनकी गंभीर बातें सुनी है, उनका चिंतन समझने की कोशिश की है. कभी किसी से कोई शिकायत न रखने  वाला  इंसान मैंने जिन्दगी में शायद इनके अलावा और कोई नहीं देखा है.  मुझे तो लगता है कि मैं उनसे क्या क्या सीखूँ .... १० प्रतिशत भी उन जैसा बन जाऊँ तो शायद मेरी जीवन-धारा ही बदल जाए.

अध्यापन से जुड़े रहते हुए सैकड़ों कवितायें, कहानियाँ, विज्ञान पर आधारित आलेख, भारत की लब्ध प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन सहित सन ६५ से ८२ तक अपनी पत्रिका " शताब्दी " निकालने वाले श्री ठाकुर साहब से आज भी समाज और सरकार की दूरी आज की विडंबना ही कही जायेगी. इतने दक्ष, ज्ञानी और योग्य सख्सियत पर आज का स्वार्थी प्रशासन और समाज क्यों मेहरबान होने चला ? आज का समाज और शासन इतना स्वस्फूर्त ही नहीं है कि वो हमारे ही समाज के योग्य व्यक्तित्व का आदर, सम्मान और यथोचित गरिमा प्रदान कर सके.

आज हम और हमारे जैसे उनके स्नेही उनके स्वस्थ्य, सुखी और शतायु होने कि मंगल कामनाएँ ही कर सकते हैं और जितना बन पड़ेगा उनके लिए प्रयासरत रहेंगे.. ईश्वर उन्हें सदैव खुश रखे...













- विजय तिवारी " किसलय "

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आदरणीय श्री ओंकार ठाकुर जी के जन्म दिवस पर उनके स्वस्थ्य और शतायु जीवन की मंगल कामनाएँ.


ठाकुर जी से मुलाकात हुए भी काफी दिन हो गये.

संजय भास्‍कर ने कहा…

श्री ओंकार ठाकुर जी के जन्म दिवस पर उनके स्वस्थ्य और शतायु जीवन की मंगल कामनाएँ.

SHAKTI PRAJAPATI ने कहा…

ONKAR THAKUR JI KO MERA CHARAN SPARSH AVAM JANM DIN KI HARDIK SHUBHKAMNAYEN.......................

BAHUT SE BARGAD JANGALO MAIN KHO GAYE,JO SHEHAR M AIN HOTE TO PUJE JATE...................

KISLAY JI BAHUT BADHIYA.

Gautam RK ने कहा…

आदरणीय श्री ओंकार जी के जन्मदिवस पर उनके जीवन की मंगल कामनाएँ.




"RAM"