रविवार, 27 सितंबर 2009

जबलपुर में जब्बार ढाकवाला के सानिध्य में स्मरणीय काव्य संध्या



दिनांक २५ सितम्बर २००९, शुक्रवार की संध्या
श्री जब्बार ढाकवाला और जबलपुर के उन चंद कवि / शायरों के लिए स्मरणीय बन गयी जो जबलपुर की होटल कलचुरी में एक त्वरित सन्देश पर एकत्र हुए थे.

सौम्य वातावरण के आगोश में सर्वप्रथम गोष्ठी संचालक गिरीश बिल्लोरे ' मुकुल '
द्बारा गोष्ठी के केंद्र बिंदु श्री ढाकवाला का शब्दाभिनंदन किया गया.












(श्री ढाकवाला और गिरीश बिल्लोरे)














(श्री ढाकवाला और किसलय )


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प्रसिद्ध शायर / रंगमंच कलाकार सूरज राय "सूरज " द्वारा विजय तिवारी "किसलय" की कृति " किसलय के काव्य सुमन " भेंट की गयी.

गोष्ठी का आगाज भाई सूरज राय "सूरज " ने अपने निराले अंदाज में किया -




जुबां की तल्ख़ जहरीली कटारी छोड़ देता है
अदब से बोलता है, रेजगारी छोड़ देता है
जवां बेटी का मुफलिस बाप ले जाता है ये कह के 
तू संग रहती है तो बनिया उधारी छोड़ देता है  


विजय तिवारी " किसलय " की माँ कविता की
 पंक्तियाँ थी -

माना तेरी उम्मीदों पर, खरा नहीं मैं उतरा हूँ
लेकिन तुझको कहाँ पता मैं, किस पीड़ा से गुजरा हूँ
हाथों का स्पर्शी-मरहम, मुझे लगाने जाओ
ममता के आँचल में फिर से, मुझे सुलाने जाओ



राष्ट्र स्तरीय शायर ज़नाब इरफान झाँसवी ने
अपने चिर परिचित अंदाज़ में कुछ यूँ बयां किया --



 वो कितना खुदनुमाई पर करने लगा यकीन
ऊँगली कटा  के उसको शहादत भी चाहिये

और

उसका दामन भीग गया है, फिर अश्कों की छागल से
याद के जुगनू लौटे होंगे, शायद दर्द के जंगल से
                               


गिरीश बिल्लोरे मुकुल द्बारा अपने आने वाले
दूसरे रियल म्यूजिक एल्बम की सूचना के साथ ही उसका एक गीत तरन्नुम में गया, बोल कुछ यूँ हैं -



देहराग नव ताल सुहानी
मानस चिंतन औगड़दानी
भ्रम इतना मन समझ पाये
अंतस जोगी  टेर   लगाये


साथ ही उनकी ये अभिव्यक्ति भी देखें -

मन  आगत की करे प्रतीक्षा
तन आहत क्यों करे समीक्षा
उलझे तंतु सुलझ पाये
मन का पाखी नीर बहाये

                     

                                  गोष्ठी में रमेश सैनी, एस सिद्दीकी और सलिल समाधिया ने भी अपनी अपनी रचनाओं द्बारा  माहौल को काव्यरस से ओतप्रोत किया.
                               इसके बाद वे पल भी आये जिस मकसद से इस गोष्ठी का आयोजन किया गया था.  श्री जब्बार ढाकवाला  ने इस गोष्ठी के आयोजन पर अपनी ख़ुशी जाहिर करते हुए जानकारी दी कि हिंदी और आंग्ल दोनों भाषाओं में शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक
" जिन्दगी के हर लमहे का मज़ा लीजिये " की तैयारी चल रही है.
हिंदी ,उर्दू और आंग्ल भाषाओं पर गद्य और पद्य के महारथी
श्री ढाकवाला ने बड़ी बेफिक्री, सहजता, अपनेपन और प्रभावी शैली में
अपनी रचनायें सुनाकर गोष्ठी को चिर स्मरणीय बना दिया.
लीजिये उनकी रचनाओं के कुछ अंश प्रस्तुत हैं -

जिंदगी के हर लमहे का मज़ा लीजिये
यहाँ पर टेंसन की जेल में, उम्रकैद की सजा लीजिये

मूक अभिनव करते करते बोलने लगे हैं वो
सूत्रधार की उपेक्षा कर मुँह खोलने लगे हैं वो

तरक्की के नाम पर इतने धोखे खाए हैं कि
अपने रहनुमाओं के बीच के दिल टटोलने लगे हैं वो

मन में मेरे अदालत जिन्दा है
क्या करुँ अन्दर छिपा एक परिंदा है

नहाता तो हूँ नए नए हम्मामों में आज भी
गुनाह नहीं मगर जेहन शर्मिंदा है

 
(पुस्तक किसलय के काव्य सुमन

के साथ श्री ढाकवाला )


गली से गुलों से नजारों से बातें
मैं करने चला हूँ बहारों से बातें


खुदा मुझको परवाज दे मैं करूँगा
जमीं के सितम पर सितारों से बातें


जुबां काटते हो तो ये याद रखना
मैं करता रहूँगा इशारों से बातें

अंत में गिरीश बिल्लोरे ने अपने भजनों की आभास जोशी द्बारा गाये साईं भक्ति एल्बम "बावरे फकीरा " की सीडी भेंट की .
इस गोष्ठी में श्री बर्नवाल, उप-महाप्रबंधक, आयुध निर्माणी जबलपुर
विशेष रूप से उपस्थित रहे ..





प्रस्तुति-  डॉ. विजय तिवारी " किसलय "

9 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

tiwari ji
bahut hi behtreen sher padhwaye .........shukriya.

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

रपट की प्रतीक्षा में था .... आनन्दित कर दिया आलेख ने
सच सादर चरण-स्पर्श
आपका
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

विजयदशमी की शुभ कामनाएं ..

Murari Pareek ने कहा…

विजय दशमी की आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभ कामनाए !!

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सभी को विजयादशमी की ढेर सारी शुभ कामनाएं।

Naveen Tyagi ने कहा…

vijay dhasmi ki hardik shubhkamnaaen.

बवाल ने कहा…

आदरणीय किसलय साहब,
वास्तव में इस कार्यकम की रिपोर्ट को पढ़कर ऐसा लगा के जैसे हम भी वहीं मौजूद थे। निराला प्रस्तुतिकरण रहा। ख़ास तौर पर जो ग़ज़लें हुईं और इर्फ़ान मियाँ के तो कहने ही क्या ? भाई सूरज राय जी के शेरों में जो दर्द झलकता है क़ाबिले-मिसाल है। आपका बहुत बहुत आभार इस सुन्दर कार्यक्रम को हम सबसे बाँटने के लिए और बहुत बहुत बधाई पुस्तक के लिए।

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

http://www.youtube.com/watch?v=RjDl4WdHTvQ

Tulsibhai ने कहा…

" sunder ...ekdum aankho dekha ahewal ...nazar ke samne ....aankho dekha ...her ek pal ko kaid kiya hai aapne kabile tarif hai aapki lekhni ...."


----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com