सोमवार, 14 सितंबर 2009

दोहा श्रृंखला (दोहा क्रमांक ७२ से ७८ तक )

हिन्दी दिवस पर कुछ दोहे:-

हिन्दी बिन्दी सी लगे, भारत माँ के भाल
केवल हिन्दी दिवस पर , सुनते हम हर साल !

हिन्दी में मिलने लगा, जग का जब सब ज्ञान
फिर क्यों सारे देश में, बढ़ी न इसकी शान ?

सच्चाई स्वीकार कर, सोचें सभी सुजान
हिन्दी के उत्थान पर, दे पाये क्या ध्यान ?

अंग्रेजी की शान में, हिन्दी का अपमान
क्यों हम सबकी आज भी, नियति बनी श्रीमान ?

मना रहे हम आज सब, हिन्दी दिवस महान
क्या ऐसा रख पायेंगे, कल भी इसका ध्यान ?

६ और अंत में देखें :-

सारे वेद पुराण हैं, जिस हिन्दी की ढाल
फिर उसके प्राचुर्य पर, नाहक उठें सवाल

-विजय तिवारी " किसलय "

7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बिल्कुल यथार्थ उजागर करते दोहे:

हिन्दी के उत्थान का, नारा दिया लगाय
अंग्रेजी में शान से, भाषण दिया सुनाय.

-पसंद आये सभी दोहे. बधाई.

नारायण प्रसाद ने कहा…

दोहे बहुत पसन्द आए ।
कृपया अशुद्ध "श्रृंखला" शब्द को सुधार कर "शृंखला" लिखें ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

विजय तिवारी " किसलय " जी!
बहुत सुन्दर दोहे हैं।
हिन्दी-दिवस की शुभकामनाएँ!

vandana gupta ने कहा…

हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं ।
हर दोहे मे हिंदी की व्यथा उजागर होती है।

"Nira" ने कहा…

हिंदी दिवस की आपको बहुत बहुत शुभकामनायें

आपके दोहे बहुत पसंद आये

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आपके द्वारा हिन्‍दी के समस्‍त दोहे हिन्‍दी के दर्द को बयान करते है।

shikha varshney ने कहा…

सारे वेद पुराण हैं, जिस हिन्दी की ढाल
फिर उसके प्राचुर्य पर, नाहक उठें सवाल
बहुत सुंदर बात कही है आपने..वैसे आपके दोहों की तो बात ही अलग है बहुत सुंदर.