गुरुवार, 11 जून 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र. ६४]

भूख, गरीबी, बेबसी,

और वक्त की पीर ।

चन्दा को रोटी समझ,

बच्चे हुये अधीर ॥

- विजय तिवारी " किसलय "

11 टिप्‍पणियां:

mehek ने कहा…

bahut sahi satya kehta sunder doha badhai

समय चक्र ने कहा…

विजय जी
बहुत बढ़िया दोहा लगा. आभार.

श्यामल सुमन ने कहा…

किसलय जी ने सच कहा रोटी है भगवान।
बेच दिया इसके लिए कितने जन ईमान।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.

vandana gupta ने कहा…

bahut gahre dard , bebasi ko darshata doha

Science Bloggers Association ने कहा…

सार्थक और प्रेरक दोहा।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बहुत सुंदर...भाव से परिपूर्ण रचना..बहुत अच्छा लगा

"अर्श" ने कहा…

SAAMJ JO JIS TARAH SE AAPNE IS CHHOTI MAGAR BHAVNAAWON SE ABHIBHUT KAVITA ME SAMMILIT KIYA HAI WO KABILE TAARIG HAI... DHERO BADHAAYEE SAHIB,....



ARSH

Girish Kumar Billore ने कहा…

क्या बात है
इरफान ने इसे यूं कहा
जा भूक की शिद्दत से तड़पेंगे मिरे बच्चे
दीवार पे रोटी की तस्वीर बना दूंगा ?
आपने स्तरीय दोहा कहा
एक उदघोष एक अहसास
वाह
दौनों श्रेष्ठ

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

बहुत ही अच्‍छा दोहा, वास्‍तव में मर्म स्‍पर्शी है।

vijay kumar sappatti ने कहा…

sir ji.


bahut hi sajeev doha ....man ko jhakjhorta hua ..is sajiv chitran ke liye aapko badhai ..

vijay
pls read my new sufi poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/06/blog-post.html

शोभना चौरे ने कहा…

ghra dard hai is dohe me .