बुधवार, 17 जून 2009

संस्कारधानी के एक बहुमुखी व्यक्तित्व : श्री मोहन शशि

की माटी में पले-बढ़े श्री मोहन शशि को आज हमारा समाज जिस आदर भाव और अपनत्व से देखता है , उसके पीछे उनकी प्रतिभा, व्यक्तित्व, जिज्ञासा, त्याग, समर्पण के अतिरिक्त स्थानीय परिवेश का भी योगदान है। 01 अप्रेल 1937 को जन्मे श्री शशि जी विद्यार्थी जीवन में अल्हड़ प्रवृत्ति के पोषक रहते हुए सदैव कुछ नया करने में विश्वास रखते थे। सामाजिक, राजनैतिक एवं साहित्यिक क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने में सक्षम श्री शशि जी सन् 1962 में महाकोशल युवक कांग्रेस दल के सेक्रेटरी बनकर यूगोस्लाविया जाना उनकी तात्कालिक कार्यक्षमता एवं योग्यता का ही परिचायक है.
जबलपुर
बातों ही बातों में पत्रकारिता का क्षेत्र चुनने वाले शशि जी ने पत्रकारिता वरण करने के उपरांत कभी पीछे मुड कर नहीं देखा. जबलपुर समाचार, प्रदीप एवं जनसत्ता के बाद 1964 में दैनिक नई दुनिया एवं 1967 से नव भारत जबलपुर की दीर्घ तथा यशस्वी यात्रा के पश्चात आज भी आप दैनिक दैनिक भास्कर जबलपुर में अपने अनंत अनुभव से पत्रकारिता मिशन में साधनारत हैं. अख़बारी एवं साहित्य आकाश में प्रतिष्ठित मोहन शशि जी के आलोक में सैकड़ों नवांकुरित पत्रकार एवं साहित्यकार अपनी मंज़िल पा चुके हैं.
पत्रकारिता और साहित्य क्षेत्र में ख्यातिलब्ध शशि जी का लेखन-चिंतन सदैव चलता रहता है। इनकी प्रकाशित कृतियाँ सरोज, तलाश एक दाहिने हाथ की, राखी नहीँ आई, हत्यारी रात, शक्ति साधना, दुर्गा महिमा एवं अमिय साहित्य साधना का ही द्योतक हैं। ऐसे संस्कार धानी जबलपुर के सपूत को अब तक अनेक अलंकरण, सम्मान एवं अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। साहित्य सुधारक, संस्कार श्री, नर्मदा चरण, भक्त कवि अलंकरण, उदारनिक सेवा पदक, जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती पत्रकारिता पुरस्कार, स्वर्गीय श्री हीरा लाल गुप्त "मधुकर" स्मृति वरिष्ठ पत्रकारिता सम्मान प्राप्त होने के बावजूद अहंकार शून्य, समर्पण शील, नेक, भावनात्मक, समाज प्रेमी, कुशल संगठक, सरल, निष्कपट व्यक्तित्व आपकी पहचान है।
संस्कारधानी की साहित्यिक, सामाजिक, सामाजिक, नृत्यकला आदि की बहुआयामी संस्था "मिलन" को शिखर में प्रतिष्ठित करने वाले श्री शशि जी ने जबलपुर की कलाओं और कलाकारों को जो स्थान दिलाया उसे जबलपुर वासी कभी भुला नहीँ पाएँगे।
संस्कार धानी की पत्रकारिता को शशि जी ने नये आयाम दिए हैं, वहीं साहित्य जगत में भी जागरूकता प्रदान की है। 72 वर्षीय शशि जी बहुमुखी प्रतिभापरक व्यक्तित्व, नयी प्रतिभाओं के उत्प्रेरक, भावी पीढ़ी के प्रेरणा स्रोत माने जाते हैं। ऐसे आदरणीय श्री मोहन शशि जी के स्वस्थ्य "एवं जीवेत शरद: शतम की कामना करते हैं।
- विजय तिवारी " किसलय "
आज हम आदरणीय मोहन शशि जी की रचना " जल है तो कल है " को उनकी ही आवाज़ में आप सब को सुनवा रहे हैं :-
रचना सुनने के लिए नीचे क्लिक करें :-


5 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

श्री मोहन शशि से मिलकर अच्छा लगा।
रचना बहुत सुन्दर है।

shama ने कहा…

Inka sahity padha nahee hai...lekin ab zaroor padhungee..khaas kar, jin kitabon kaa naamo nirdesh kiya gaya hai...!
Dhanyawad!

vandana gupta ने कहा…

shri mohan shashi ji ke bare mein achchi jankari di........aap bahut hi badhiya kaam karte hain .........hamare desh mein na jane kitne anmol moti hain jo logon ki nigahon se chupe pade hain ........un sabse hamein parichit karwakar aap ek bahut badhiya kaam kar rahe hain........bahut hi badhiya.

समय चक्र ने कहा…

जबलपुर की माटी में पले-बढ़े श्री मोहन शशि संस्कारधानी के साहित्यजगत के सुपरिचित नाम है . ..... उनका परिचय नेट पर सभी को बांटने के लिए आभार.

Girish Kumar Billore ने कहा…

Sadar charan vandana gurudev kee
aapake bhee kamal kar diyaa