प्रायः देखा गया है कि प्रत्येक चीज की जानकारी होते ही लोग सर्वप्रथम उसके दुरुपयोग पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं । परमाणु ऊर्जा की खोज विकास के लिये की गयी थी, लेकिन उससे हुए दुरुपयोग को कौन नहीं जानता । समाचार पत्र- पत्रिकाओं और न्यूज चेनलों की जानकारियों और समाचारों के द्वारा भी प्राप्त ज्ञान का उपयोग कम, दुरुपयोग ही ज्यादा हुआ है । जब बताया जाता है कि चोरों ने तिजोरी को इस तरह से खोला तब अन्य चोर भी उस विधि से अवगत हो जाते हैं । हत्या कैसे की गई, विस्फोटक सामग्री कैसे बनाई गई, आतंक कैसे फैलाया गया या फिर इलेक्ट्रानिक और प्रिण्ट मीडिया द्वारा एक नेता पर फेके गये जूते का समाचार आया तो हर आदमी समझ गया कि ऐसा करने से ख्याति या कुख्याति प्राप्त की जा सकती है । आप ही आत्म अवलोकन करें कि मीडिया द्वारा यह बताया जाना अनिवार्य है कि विस्फोटक सामग्री आतंकियों ने ऐसे बनाई, संसद भवन में सुरक्षा घेरे में किस तरह सेंध लगाई अथवा ताज होटल में आतंकियों को कैसे घेरा गया ? हम यह भी कह सकते हैं कि थोड़े से टी. आर. पी. बढ़ाने और स्वार्थ के चक्कर में हम स्वयं और अपने देश का कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं । यहाँ बात पहुँचती है किसी भी माध्यम से जानकारी सम्प्रेषण पर हुए लाभ और हानि की । यह बात शालेय जीवन पर भी लागू होती है ।
सृष्टि का नियम है कि हर चीज समय पर ही अच्छे परिणाम देती है, चाहे वह फल हो, फसल हो अथवा हमारे जीवन की विभिन्न अवस्थायें । हम यहाँ शास्त्रोक्त बातें नहीं बताना चाहेंगे लेकिन यह बताना जरूरी है कि बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था के कार्यों में उलट-फेर करें तो समाज में अराजकता फैल जायेगी ।
इंसान में ईश्वर प्रदत्त बुद्धि और विवेक ऐसी अद्भुत शक्तियाँ हैं जो इंसान को अन्य जीव-जन्तुओं से पृथक करती है । इंसान को कभी भी समग्र रूप से नहीं समझाना पड़ता, वह स्वमेव अधिकांश बातें सीख जाता है । यह सीखने की प्रवृत्ति इंसान में जन्मजात पाई जाती है । जैसे जैसे उम्र बढ़ती है इंसान घर, बाहर, प्रकृति तथा अन्य जीव-जन्तुओं के क्रिया-कलाप , दृश्य और अवस्थाओं को देख-सुनकर, अपनी बुद्धि-विवेक के सहारे उसकी वास्तविकता, गुण-दोष, हानि-लाभ आदि के काफी निकट पहुँच जाता है । उम्र के अनुसार प्राप्त अनुभव हर परिस्थितियों में सटीकता और सामंजस्य की गुणवत्ता बढ़ाता है । आज के परिवेश में दृश्य, श्रव्य एवं लिखित इतना कुछ उपलब्ध है कि अलग से कुछ विशेष बातें ही समझाने के लिये शेष बचती हैं ।
आज शालेय जीवन में ही जब विद्यार्थियों का ध्यान केवल पढ़ाई और भविष्य संवारने में लगा होना चाहिये तब हम उन्हें स्त्री-पुरुषों के जननांगों की बारीकियों और हानि-लाभ के साथ-साथ संबंधित सुरक्षा उपायों की शिक्षा देना चाहते हैं तब विद्यार्थी बाकी बातौं को तो साधारण रूप से ग्रहण करेंगे लेकिन, सुरक्षा उपायों पर उनका ध्यान जरूर केन्द्रित होगा जिससे यौन क्रियाओं की प्रवृत्ति को बल मिलेगा । आज भी रेडियो, टेलीविजन और समाचार पत्र-पत्रिकाओं के विज्ञापन, फिल्मों और समाचारों द्वारा परोसी जा रही सामग्री के परिणाम दिखाई देने लगे हैं ।
हम यहाँ यौन शिक्षा के शत-प्रतिशत विरोधी नहीं हैं । शालेय स्तर पर यौन शिक्षा प्रणाली लागू करने के पूर्व इसके समस्त पहलुओं का बारीकी से अध्ययन नितान्त आवश्यक है । इसके तात्कालिक और दूरगामी परिणामों का प्रामाणिक सर्वेक्षण और परीक्षण होना अनिवार्य है । पश्चिमी देशों का अंधानुकरण और जल्दबाजी में उठाया गया कोई भी गलत कदम हमारी पारम्परिक सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर सकता है । जहाँ तक मेरा मानना है कि शालेय पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा का विशेष पाठ्यक्रम न होकर अन्य विषयों का स्वरूप ही ऐसा होना चाहिये जिससे छात्र प्रशिक्षित शिक्षकों के अध्यापन से ही यौन शिक्षा का भी आदर्श ज्ञान प्राप्त कर सकें।
आज हर बच्चा औसतन जयादा जिज्ञासु प्रतीत होता है। वह आस-पड़ोस के परिवेश से पूर्णरूपेण परिचित होना चाहता है । एक छोटी सी गलत जानकारी उसके भविष्य में गतिरोध बन सकती है। अतः उसकी सारी जिज्ञासाओं का समाधान ऐसे तरीकों से माँ-बाप और शिक्षकों द्वारा किया जाना चाहिये जिससे वह यौन शिक्षा को सहजता से स्वीकार करे, न कि उसके दुरुपयोग हेतु किसी जानकारी के रूप में ग्रहण करे.
हम यहाँ यह भी बताना चाहेंगे कि आज के छात्र और छात्रायें अपने भविष्य के प्रति अधिक जागरूक और संवेदनशील हैं । भूमंडलीयकरण के चलते हर छात्र अपना भविष्य देश-विदेश की अच्छी से अच्छी नौकरी के रूप में देखता है । हम कह सकते हैं कि जब छात्र स्वमेव अपने भविष्य के प्रति सजग है तब हम ऐसी कोई भूल न करें जिससे सुनहरा भविष्य और सकारात्मक सोच दिग्भ्रमित हो ।
आज आवश्यकता है अपनी संस्कृति और अच्छी परम्परओं के बीज अपनी संतानों में डालने की । उनमें आदर्श मानवीय भावनायें जगाने की, क्योंकि आज हमारी हिन्दु संस्कृति सम्पूर्ण विश्व में केवल अपनी विशेषताओं के कारण सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है । हमारे समाज और हमारी शिक्षा प्रणाली में आज ऐसी भावनाओं और विचारों का समावेश किया जाना अत्यावश्यक हो गया है, जिससे शालेय जीवन में हमारी संतान बिना दिग्भ्रमित हुए यौन शिक्षा प्राप्त करे और प्राप्त जानकारियों का उपयोग कर अपना जीवन विकासोन्मुखी बना सके ।
- विजय तिवारी " किसलय "
सृष्टि का नियम है कि हर चीज समय पर ही अच्छे परिणाम देती है, चाहे वह फल हो, फसल हो अथवा हमारे जीवन की विभिन्न अवस्थायें । हम यहाँ शास्त्रोक्त बातें नहीं बताना चाहेंगे लेकिन यह बताना जरूरी है कि बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था के कार्यों में उलट-फेर करें तो समाज में अराजकता फैल जायेगी ।
इंसान में ईश्वर प्रदत्त बुद्धि और विवेक ऐसी अद्भुत शक्तियाँ हैं जो इंसान को अन्य जीव-जन्तुओं से पृथक करती है । इंसान को कभी भी समग्र रूप से नहीं समझाना पड़ता, वह स्वमेव अधिकांश बातें सीख जाता है । यह सीखने की प्रवृत्ति इंसान में जन्मजात पाई जाती है । जैसे जैसे उम्र बढ़ती है इंसान घर, बाहर, प्रकृति तथा अन्य जीव-जन्तुओं के क्रिया-कलाप , दृश्य और अवस्थाओं को देख-सुनकर, अपनी बुद्धि-विवेक के सहारे उसकी वास्तविकता, गुण-दोष, हानि-लाभ आदि के काफी निकट पहुँच जाता है । उम्र के अनुसार प्राप्त अनुभव हर परिस्थितियों में सटीकता और सामंजस्य की गुणवत्ता बढ़ाता है । आज के परिवेश में दृश्य, श्रव्य एवं लिखित इतना कुछ उपलब्ध है कि अलग से कुछ विशेष बातें ही समझाने के लिये शेष बचती हैं ।
आज शालेय जीवन में ही जब विद्यार्थियों का ध्यान केवल पढ़ाई और भविष्य संवारने में लगा होना चाहिये तब हम उन्हें स्त्री-पुरुषों के जननांगों की बारीकियों और हानि-लाभ के साथ-साथ संबंधित सुरक्षा उपायों की शिक्षा देना चाहते हैं तब विद्यार्थी बाकी बातौं को तो साधारण रूप से ग्रहण करेंगे लेकिन, सुरक्षा उपायों पर उनका ध्यान जरूर केन्द्रित होगा जिससे यौन क्रियाओं की प्रवृत्ति को बल मिलेगा । आज भी रेडियो, टेलीविजन और समाचार पत्र-पत्रिकाओं के विज्ञापन, फिल्मों और समाचारों द्वारा परोसी जा रही सामग्री के परिणाम दिखाई देने लगे हैं ।
हम यहाँ यौन शिक्षा के शत-प्रतिशत विरोधी नहीं हैं । शालेय स्तर पर यौन शिक्षा प्रणाली लागू करने के पूर्व इसके समस्त पहलुओं का बारीकी से अध्ययन नितान्त आवश्यक है । इसके तात्कालिक और दूरगामी परिणामों का प्रामाणिक सर्वेक्षण और परीक्षण होना अनिवार्य है । पश्चिमी देशों का अंधानुकरण और जल्दबाजी में उठाया गया कोई भी गलत कदम हमारी पारम्परिक सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर सकता है । जहाँ तक मेरा मानना है कि शालेय पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा का विशेष पाठ्यक्रम न होकर अन्य विषयों का स्वरूप ही ऐसा होना चाहिये जिससे छात्र प्रशिक्षित शिक्षकों के अध्यापन से ही यौन शिक्षा का भी आदर्श ज्ञान प्राप्त कर सकें।
आज हर बच्चा औसतन जयादा जिज्ञासु प्रतीत होता है। वह आस-पड़ोस के परिवेश से पूर्णरूपेण परिचित होना चाहता है । एक छोटी सी गलत जानकारी उसके भविष्य में गतिरोध बन सकती है। अतः उसकी सारी जिज्ञासाओं का समाधान ऐसे तरीकों से माँ-बाप और शिक्षकों द्वारा किया जाना चाहिये जिससे वह यौन शिक्षा को सहजता से स्वीकार करे, न कि उसके दुरुपयोग हेतु किसी जानकारी के रूप में ग्रहण करे.
हम यहाँ यह भी बताना चाहेंगे कि आज के छात्र और छात्रायें अपने भविष्य के प्रति अधिक जागरूक और संवेदनशील हैं । भूमंडलीयकरण के चलते हर छात्र अपना भविष्य देश-विदेश की अच्छी से अच्छी नौकरी के रूप में देखता है । हम कह सकते हैं कि जब छात्र स्वमेव अपने भविष्य के प्रति सजग है तब हम ऐसी कोई भूल न करें जिससे सुनहरा भविष्य और सकारात्मक सोच दिग्भ्रमित हो ।
आज आवश्यकता है अपनी संस्कृति और अच्छी परम्परओं के बीज अपनी संतानों में डालने की । उनमें आदर्श मानवीय भावनायें जगाने की, क्योंकि आज हमारी हिन्दु संस्कृति सम्पूर्ण विश्व में केवल अपनी विशेषताओं के कारण सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है । हमारे समाज और हमारी शिक्षा प्रणाली में आज ऐसी भावनाओं और विचारों का समावेश किया जाना अत्यावश्यक हो गया है, जिससे शालेय जीवन में हमारी संतान बिना दिग्भ्रमित हुए यौन शिक्षा प्राप्त करे और प्राप्त जानकारियों का उपयोग कर अपना जीवन विकासोन्मुखी बना सके ।
- विजय तिवारी " किसलय "
6 टिप्पणियां:
संस्कृति के अनुरूप यदि अच्छी परम्पराओं के बीज संतानों में बोए जाये तो वे राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका का निर्वहन अच्छी तरह से कर सकते है . यौन शिक्षा यदि जनपयोगी हो तो यह भी बुरा नहीं है .
पहला पाठ तो यह हो कि बालक अपनी यौन जिज्ञासाओं को अपने अभिभावकों और शिक्षकों से छिपाना छोड़े। इस के लिए पहले अभिभावकों और शिक्षकों को शिक्षित करने की जरूरत है।
Sahamat hoon dinesh ji se
विषय विचार योग्य तो है किन्तु आप समझिए किस तरीके को अपनाना होगा इस हेतु ठोस पहल ज़रूरी है
vijay ji
bahut sensitive vishay par likha hai, sanskaron se bache sahi marg par chal sakte hain.
seeksha aor jankari hamesha kaam aati sahi nirnay leneke liye.
shukriya bahut acha likh likha hai
nira
सामान्य जीवन में इस प्रकार की, इस प्रकार का चित्रण प्रस्तुत किया जा रहा है वह विल्कुल ठीक नही है।
आज की परिस्थिति में, घर के बड़े लोगो के साथ बैठ कर टीवी देखना कठिन हो गया है। ऐसा नही है कि सामान्य व्यवाहार में ऐसा नही होता है, किन्तु सब का एक उचित समय होता है।
कुछ साल पूर्व मैने अपने लेख सेक्स शिक्षा - Sex Education
व संस्कार शिक्षा या सेक्स एजुकेशन पर अपने राय लिख चुका हूँ। मै पुष्प को गरम जल से सीचने के बिल्कुल खिलाफ हूँ।
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