मानव के दुर्गुण जब समाज के सामने आते हैं तब उसकी निंदा होना स्वाभाविक है । यदि किसी की आलोचना होती रहे तो वह निन्दित-दुर्गुणों की ओर ध्यान अवश्य देगा और उनके निराकरण के उपाय भी सोचेगा । वहीँ निंदा से घबराए इंसान अक्सर समाज में अपनी प्रतिष्ठा नहीं बना पाते . वैसे किसी ने सच ही कहा है कि निंदा की सकारात्मक स्वीकृति एक बड़े साहस की परिचायक है। यदि इंसान अपनी निंदा करना स्वयं शुरू कर दे और उन पर अमल करे तो इसे हम " सोने पर सुहागा " वाली कहावत को चरितार्थ होना कहेंगे। मन से दुर्गुण रूपी मैल के निकल जाने से इंसान में चोखापन आता है. स्वयं की बुराइयों को नज़र अंदाज़ करने वाले इंसान को कभी भी नीचा देखना पड़ सकता है, लेकिन इंसान अपने आप में सद्विचार और परिवर्तन लाता है तब वह दूसरों को भी सुधारने या सद्मार्ग की ओर प्रेरित करने का हक़ प्राप्त कर लेता है. यही कारण है कि ऐसे इंसान के समक्ष कोई भी दुर्गुणी ज्यादा देर तक टिक ही नहीं पाता. यह कहना भी उचित है कि कोई भी व्यक्ति सर्वगुण संपन्न हो ही नहीं सकता और यदि सर्व संपन्न है तो वह मानव नहीं देवता कहलायेगा। हम सभी ये जानते हुए भी कि सद्कर्मी सर्वत्र प्रशंसनीय होते हैं, फिर भी हमारी प्रवृत्ति सद्कर्मोन्मुखी कम ही होती है. हम अपने गुणों का बखान करने के स्थान पर यदि आत्मावलोकन करें और बुराईयों को दूर करने का प्रयत्न करें तो निश्चित रूप से हमारे अन्दर ऐसे परिवर्तन आयेंगे जिससे हम समाज में कम से कम एक अच्छे इंसान के रूप में तो जाने जायेंगे. अंत में निष्कर्ष यही निकलता है कि अपनी निंदा या आलोचना को सदैव सहज स्वीकृति देते हुए उस पर आत्मावलोकन करें, आत्म चिंतन करें और जो निष्कर्ष सामने आएँ उनका अनुकरण करें तो इंसान कभी भी दुखी या निराश नहीं रहेगा।
13 टिप्पणियां:
सदविचार...अति विचारणीय! आपका आभार.
सच सहमत हैं
असहमति की कोई बात नहीं भाई साहब
शेष शुभ जी
विजय जी ,
आपका लेख सोचने के लिए मजबूर करता है.
बहुत बहुत बधाई .
"आलोचना को सदैव सहज स्वीकृति देते हुए उस पर आत्मावलोकन करें,"
किसलय जी।
"खुद की आलोचना पर आत्मावलोकन"
बेहतरीन लेख।
बधाई।
bura jo dekhan main chala
bura na milya koi
jo tan khoja aapna
to mujhse bura na koi
yeh ukti pahle bhi aur aaj bhi aur aage bhi .......hamesha sahi baithegi........sirf aatmavlokan ki aavashyakta hai .
बहुत अच्छे विचार हैं .....अच्छा लगा पढ़कर
"निंदक नियरे राखिये......" वाली बात हो गई.
जब उससे कोई इंकार नहीं तो आपकी बैटन से भी पूर्णतः सहमत हूँ.
आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
बढ़िया लगा आपका यह लेख ...सही कहा आपने
agar kisi ke hath thamne se andar ka akelapan dur hota to sayad koi akela na hota...
agar kisi ke ansu pochne se ansu khatam ho jate to ankhe bar bar nam na hota...
agar har koi yhan khush hota to duniya sharabion ka mela na hota...
agar apno ne dhoka na diya hota to sayad jindegi jine ka gam na hota...
agar sansar me chain se soya jata to insaan kabar me jake na sota...
Humare galtion ka ehesas apne hi dilate hain...
Hum galti karne chale to apne piche se bulate hain...
Yein hak tumhara hai, tum yein hak jatayein rakhna...
Galti ho agar koi humse, hume maaf karke yein rishta nivayein rakhna
Jab kisi se koi gila rakhna...
samne apne ayina rakhna...
masjidein hain namajiyon ke liye...
apne ghar me kahi khuda rakhna....
dosti me milna julna jaha jaruri ho...
milne julne ka hosla rakhna...
(Jagjit Singh)
bura jo dekhan main chala
bura na milya koi
jo tan khoja aapna
to mujhse bura na koi
अति प्रशंनीय , प्रेणीय और प्रेणनादायी लेख .............
बहुत लम्बे अन्तराल के बाद हिन्दी लेखन का आनंद प्राप्त हुआ
सदविचारो को सहज एवेम् सहर्ष स्वीकृति है
अनेकानेक शुभकामनाए.........
अंकुर शर्मा वत्स
सॉफ्टवेर इंजिनियर
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