शनिवार, 16 मई 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र. ५६]

जेठ मास की धूप में ,
पास न हो जब छाँव ।
बरबस आते याद तब,
पेड़ , बगीचे , गाँव ॥
- विजय तिवारी ' किसलय "

8 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन दोहा!!

संगीता पुरी ने कहा…

बढिया है ..

समयचक्र ने कहा…

धूप जब बहुत तेज हो तो बरबस याद आते है गाँव. बहुत बढ़िया दोहा. बधाई.

Alpana Verma ने कहा…

bilkul sahi ..

vandana gupta ने कहा…

bahut badhiya

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ग्रीष्म के मौसम के बेहतरीन दोहे।
आपके लिए एक यह भी है-

जब तपती गरमी पड़े,
पंखें नही सुहाय।
पाकड़,पीपल,नीम की,
छाया मन को भाय।
धन्यवाद।

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

बिल्‍कुल सही, जमीन से जुड़ी हुई बात कही है आपने