सोमवार, 27 अप्रैल 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र. ५४]

सद्कर्मों की नाव ले,
परहित की पतवार .
नाविक रूपी जिंदगी ,
करिये भव के पार ..
- विजय

7 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

शब्द भाव संयोग से दोहा लिखते आप।
सद्कर्मों से दूर क्यों जो भी करता पाप।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत ब्ढिया मुक्तक है।बधाई।

naresh singh ने कहा…

गागर मे सागर ।

sanjiv gautam ने कहा…

achchha hai

समयचक्र ने कहा…

सद्कर्मों की नाव ले,
परहित की पतवार
bahut sundar bhavavyakti. narmade har

नीरज गोस्वामी ने कहा…

वाह....क्या बात है जी...बहुत खूबसूरत.
नीरज

Alpana Verma ने कहा…

बहुत सही,,सद्कर्म ही हमें आत्मविश्वास और आगे बढ़ने का बल और जीवन में प्रकाश देते हैं.