रविवार, 5 अप्रैल 2009

एक लघुकथा "ठेका"

खादी का कुर्ता पायजामा, आँखों पर सुनहरा चश्मा पहने नेता जी मंच से भाषण दे रहे थे :-
हमें देश को समृद्ध बनाना है
सबको काम और मकान देना है ।
देश से गरीबी हटाना है ।
तालियाँ और जिंदाबाद के नारे श्रोताओं से ज्यादा उनके चमचे लगा रहे थे ।
भाषण समाप्त कर नेता जी मंच से उतर कर जैसे ही अपनी बुलेटप्रूफ गाड़ी की ओर बढ़े तभी एक फटेहाल गरीब अधेड़ नेता जी के सामने पहुँचकर अपनी समस्या बता पाता, नेता जी के एक चमचे ने उसे धक्का देकर सामने से हटा दिया ।
वहीं इस घटना को नज़र अंदाज़ करते हुए नेताजी कार की गद्दी में धस गए ।
बस उनकी आवाज़ मेरे कानों में हथौडे जैसी लगी-
" साले भिखारी को इसी वक्त सामने आना था, जैसे गरीबी हटाने का "ठेका" वाकई हमने ही ले रखा हो ।
- विजय तिवारी " किसलय "