प्राचीन भारत का लिखित-अलिखित इतिहास साक्षी है कि भारतीय समाज ने कभी मातृशक्ति के महत्व का आकलन कम नहीं किया, न ही मैत्रेयी, गार्गी, विद्योत्त्मा, लक्ष्मीबाई, दुर्गावती के भारत में इनका महत्व कम था. हमारे वेद और ग्रंथ शक्ति के योगदान से भरे पड़े हैं. इतिहास वीरांगनाओं के बलिदानों का साक्षी है. जब आदिकाल से ही मातृशक्ति को सोचने, समझने, कहने और कुछ कर गुजरने के अवसर मिलते रहे हैं तब वर्तमान में क्यों नहीं? आज जब परिवार, समाज, राष्ट्र नारी की सहभागिता के बिना अपूर्ण है तब हमारा दायित्व बनता है कि हम बेटियों में दूना-चौगुना उत्साह भरें. उन्हें घर, गाँव, शहर, देश और अंतरिक्ष से भी आगे सोचने का अवसर दें. उनकी योग्यता और क्षमता का उपयोग समाज और राष्ट्र विकास में होनें दें.
आज भले हम विकास के अभिलेखों में नारी सहभागिता को उल्लेखनीय कहें परंतु पर्याप्त नहीं कह सकते. अब समय आ गया है कि हम बेटियों के सुनहरे भविष्य के लिए गहन चिंतन करें. सरोजिनी नायडू, मदर टेरेसा, अमृता प्रीतम, डॉ शुभलक्ष्मी. पी टी उषा जैसी नारियाँ वे हस्ताक्षर हैं जो विकास पथ में "मील के पत्थर" सिद्ध हुई हैं, फिर भी नयी नयी दिशाओं मे ,नये आयामों मे, सुनहरे कल की ओर विकास यात्रा निरंतर आगे बढ़ती रहेगी. पहले नारी चहार दीवारी तक ही सीमित थी, परंतु आज हम गर्वित हैं कि नारी की सीमा समाज सेवा, राजनीति, विज्ञान, चिकित्सा खेलकूद, साहित्य और संगीत को लाँघकर दूर अंतरिक्ष तक जा पहुँची है. भारतीय मूल की नारी ने ही अंतरिक्ष में जाकर अपनी उपस्थिति से नारी को गौरवान्वित किया है. महिला वर्ग में शिक्षा के प्रति जागरूकता, पुरुषों की नारी के प्रति बदलती हुई सकारात्मक सोच, नारी प्रतिभा और महत्व का एहसास आज सभी को हो चला है. उद्योग-धंधे या फिर तकनीकी, चिकित्सा आदि का क्षेत्र ही क्यों न हो, नारी प्रतिनिधित्व स्वाभाविक सा लगने लगा है. अनेक क्षेत्रों में नारी पुरुषों से कहीं आगे निकल गई है.
समाज महिला और पुरुष दोनों वर्गों का मिला-जुला स्वरूप है. चहुँमुखी विकास में दोनों की सक्रियता अनिवार्य है. महिलाओं में प्रगति का अर्थ है आधी सामाजिक चेतना और जन-कल्याण. महिलाएँ घर और बाहर दोनों जगह महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती हैं, बशर्ते वे शिक्षित हों. जागरूक हों. उन्हें उत्साहित किया जाए. उन्हें आभास कराया जाए कि नारी तुम्हारे बिना विकास सदैव अपूर्ण रहेगा. अब स्वयं ही तुम्हें अपने बल, बुद्धि और विवेक से आगे बढ़ने का वक्त आ गया है. कब तक पुरुषों का सहारा लोगी ? बैसाखी पकड़कर चलने की आदत कभी स्वावलंबन नहीं बनने दे सकती. कर्मठता का दीप प्रज्ज्वलित करो. श्रम की सरिता बहाओ. बुद्धि का प्रकाश फैलाओ और अपनी " नारी शक्ति " का वैभव दिखला दो. नारी विकास के पथ में आने वाले सारे अवरोधों को हटा दो. घर की चहारदीवारी से बाहर निकालकर कूद पडो विकास के महासमर में. छलाँग लगा दो विज्ञान और तकनीकी के अंतरिक्ष में. परिस्थितियाँ और परिवेश बदले हैं. आत्मनिर्भरता बढ़ी है. दृढ़ आत्मविश्वास की और आवश्यकता है. मात्र नारी मुक्ति आंदोलनों से कुछ नहीं होगा! पहले तुम्हें स्वयं अपना ठोस आधार निर्मित करना होगा. इसके लिए शिक्षा, कर्मठता का संकल्प, भविष्य के सुनहरे सपने और आत्मविश्वास की आधार शिलाओं की आवश्यकता है. इन्हें प्राप्त कर इन्हें ही विकास की सीढ़ी बनाओ और पहुँचने की कोशिश करो, प्रगति के सर्वोच्च शिखर पर. कोशिशें ही तो कर्म हैं. कर्म करती चलो. परिणाम की चिंता मत करो. नारी तुम्हारा श्रम, तुम्हारी निष्ठा, तुम्हारी सहभागिता, तुम्हारे श्रम सीकर व्यर्थ नहीं जाएँगे. कल तुम्हारा होगा. तुम्हारी तपस्या का परिणाम निःसंदेह सुखद ही होगा, जिसमें तुम्हारी, हमारी और सारे समाज की भलाई निहित है. - डॉ. विजय तिवारी " किसलय "
7 टिप्पणियां:
बढ़िया विचारणीय आलेख. नारी शक्ति को नमन करता हूँ . आभार
बैसाखी पकड़कर चलने की आदत कभी स्वावलंबन नहीं बनने दे सकती. कर्मठता का दीप प्रज्ज्वलित करो.
Ozpurna aalekh.
Holi ki hardik shubkamnayen.
होली पर्व पर आपको और परिवारजनों को हार्दिक शुभकामना .......
प्रेम चंद जी की कुछ पंक्तियों को उद्धृत कर रहा हूँ -
'स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान है,शान्ति सम्पन्न है,सहिष्णु है | पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं तो वह महात्मा बन जाता है | नारी में पुरुष के गुण आ जाते हैं तो वह कुलटा हो जाती है |'
Bahut achcha or prerna dayak aalekh... ek baat kehna chahungi nari ki unnatti purush ki barabari karne main ye usse pritiyogita karne main nahi ..varan apni nari sulabh shakti or swabhav ko banaye rakhte hue apne adhikaron ke priti satark hone main or safal hone main hai.
बहुत सही लिखा है ....
"हेम जी
नमस्कार
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अत्यंत महत्व पूर्ण होती है.
आपने टिप्पणी की है :-
"प्रेम चंद जी की कुछ पंक्तियों को उद्धृत कर रहा हूँ -
'स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान है,शान्ति सम्पन्न है,सहिष्णु है | पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं तो वह महात्मा बन जाता है | नारी में पुरुष के गुण आ जाते हैं तो वह कुलटा हो जाती है |' ""
आपने सन्दर्भ देकर बताना चाहा है कि " नारी में पुरुष के गुण आ जाते हैं तो वह कुलटा हो जाती है | "
मैं या तो आपका आशय नहीं समझ पाया या फिर मुझ में ही कुछ विचारों में अपरिपक्वता हो सकती है.
मैं आप से न ही कोई सवाल करूँगा न ही उत्तर दूँगा .
बस केवल और केवल निम्न बात कहना चाह रहा हूँ:-
प्रेम चंद्र और वर्तमान का अंतराल काफ़ी बड़ा और सामाजिक परिवर्तनों से ओतप्रोत है. प्रेमचंद्र युग में अगर मैं होता तो शायद मैं भी उनका ही समर्थक होता लेकिन समय और परिस्थितियों के साथ साथ मान्यताएँ , परंपराएँ, रीति-रिवाज़ और सोच के नज़रिए भी बदलते रहते हैं, अतः वर्तमान समय में नारी यदि पुरुषों के कार्य भली भाँति करने में सक्षम है तो उसे तथाकथित प्रेमचंद्र युगीन कुलटा कहना अप्रासंगिक होगा .
- विजय"
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