रविवार, 15 मार्च 2009

मुझे जीने दो...

संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठ साहित्यकार , सम्पादक श्री ओंकार ठाकुर एक संवेदन शील , सरल और सहज व्यक्तित्व के पर्याय मने जाते हैं। मैं उनको जितना जानना चाहता हूँ , उतना ही अपने आप को सतह पर पाता हूँ ।
हिन्दी और हिन्दी साहित्य हो, आंग्ल भाषा और आंग्ल साहित्य हो, विज्ञान आलेख हों, कहानी ,कवितायें या फ़िर गहन चिंतन-मनन के विषय हों, हर क्षेत्र में उनकी अभिव्यक्ति असाधारण ही लगती है। मैं अपने आप को अति भाग्यशाली मानता हूँ उनकी छत्रछाया को पाकर। उनका स्नेह मेरे लिए किसी अभिभावक से कम नहीं है।
आज ही उन्होंने सबेरे- सबेरे मुझे दूरभाष पर सूचित किया कि मेरी कहानी " मुझे जीने दो " का प्रकाशन आज की नई दुनिया में हुआ है , आप पढ़कर बतायें। हमेशा की तरह एक सुंदर कहानी पढ़कर जिस तरह मुझे आननद की अनुभूति हुई , मैं चाहता हूँ आप सब भी निम्न कहानी पढ़कर आननद प्राप्त करें।

कहानी पढने हेतु निम्न चित्र पर क्लिक करें :-
प्रस्तुति
- विजय तिवारी ' किसलय '

16 टिप्‍पणियां:

BrijmohanShrivastava ने कहा…

प्रस्तुति के लिए धन्यवाद

सिटीजन ने कहा…

सम्मानीय औकार ठाकुर दादाजी की यह कहानी बहुत ही बढ़िया लगी. प्रस्तुति के लिए आभार.

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

कहानी बहुत ही बढ़िया लगी . प्रस्तुति के आभार.

vandana gupta ने कहा…

bahut achche dhang se bhavnayein vyakt ki hain nari man ki.......jaise khud wo sab saha ho.

sarita argarey ने कहा…

ना जाने कितनी केतकियों का अन्कहा सच है " मुझे जीने दो" । उम्दा रचना ।

Udan Tashtari ने कहा…

यह कब का संस्मरण है भाई साहब??

दादा की कहानियाँ तो हमेशा ही असरकारक होती थी.
आपका बहुत आभार इसे प्रस्तुत करने का.

hem pandey ने कहा…

कहानी पढ़वाने के लिए धन्यवाद.

Prem Farukhabadi ने कहा…

sareetha ji, ke vicharon se main sahmat hoon.
ना जाने कितनी केतकियों का अन्कहा सच है " मुझे जीने दो" । उम्दा रचना ।

Prem Farukhabadi ने कहा…

sareetha ji, ke vicharon se main sahmat hoon.
ना जाने कितनी केतकियों का अन्कहा सच है " मुझे जीने दो" । उम्दा रचना ।

संगीता पुरी ने कहा…

संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठ साहित्यकार , सम्पादक श्री ओंकार ठाकुर से परिचय के लिए धन्‍यवाद ... पढने के लिए उनकी कहानी पर क्लिक किया है ।

बवाल ने कहा…

बहुत उम्दा प्रस्तुति किसलय साहब । आभार इसके लिए बहुत बहुत।

मोना परसाई ने कहा…

आधुनिक नारी जीवन और पति-पत्नी की संबंधों का यथार्थ चित्रण. प्रस्तुतिहेतु धन्यवाद .

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

बृजमोहन जी,सिटिजन जी,महेंद्रजी,वंदनाजी,सरिता जी,उड़न तश्तरी जी,हेमजी,प्रेम जी, संगीताजी, बवाल जी,मोना जी.सभी कोई मेरा आत्मीय आभार .
- विजय

Dileepraaj Nagpal ने कहा…

Aankhe Nam Kart Di Mujhe Jeene Do Ne. Badhayi...

Akhilesh Shukla ने कहा…

माननीय महोदय,
सादर अभिवादन
मैंने आज आपक ब्लाग पर विजिट किया है। आज ही सुबह आपसे फोन पर बात हुई थी। आपके ब्लाग पर बहुत ही सुंदर कविताएं प्रकाशित हैं। यदि आप साहित्यिक पत्रिकओां की समीक्षा पढ़ना चाहते हैं तो मेरे ब्लाग पर अवश्य ही पधारे तथा उस ब्लाग पर आपकी प्रििक्रय दे।
अखिलेश शुक्ल
संपादक कथा चक्र
please visit us--
http://katha-chakra.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

एक अच्‍छी कहानी पढ़वाने के लिए आभार।