आज हमने अपने मित्र गिरीश बिल्लोरे की पोस्ट पढ़ी , उन्होंने बहुत निर्भयता से बताया कि " मुझे रोकने का किसी के पास कोई अधिकार नहीं है " सच है आप कुछ भी करें , हमारी सेहत पर असर क्यों पड़ेगा. जब आप देश से , अपनी माटी से अपने भाई, बहन माँ, बीबी . बच्चों से प्रीति करें और किसी को आपत्ति हो तो उसे चौराहे पर जूतों से पीटना चाहिए. गिरीश भाई के प्यार करने के तरीके को मैं भी मानता हूँ.
फ़िर प्रतिवर्ष महात्मा वेलेंटाइन के इस पावन पर्व पर बवाल क्यों होता है ? इस पर हमें हमारे संगठनों , हमारे प्रशासन और आप-हम सब को चिन्तन करने की आवश्यकता है. आप कहें कि मैं अपनी बीबी से बीच चौराहे पर खड़े होकर प्रेम करुँ या आलिंगन करुँ तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए तो ये सरासर ग़लत है क्यों कि ये इस स्थिति में आपका नहीं सामाजिक मामला बन जाता है , जिसे ख़ास तौर पर हमारी भारतीय संस्कृति में इसे असभ्यता ही कहा गया है, इतिहास को पलट कर देख लिया जाए इस सन्दर्भ के लिए. हम प्रेमालाप और महिला पुरुषों के प्रेम प्रसंगों को सार्वजानिक तौर पर प्रचारित और प्रसारित नहीं करते . कुछ अपवाद हो सकते हैं तो उनकी परिस्थिति और परिवेश अलग रहे होंगे. वेलेंटाइन डे को लेकर आज जो बवाल खड़े होते हैं वे कोरी बकवास नही हैं न ही कोई राजनैतिक मुद्दा ..
ये सारा आक्रोश , विरोध और विवाद की जड़ हमारी पवित्र ऐतिहासिक संस्कृति हैं , जहाँ हम सौभाग्य से पैदा हुए हैं. आज आपकी संतान वेलेंटाइन डे पर सार्वजनिक रूप से फूहड़ता या विवाह से पहले किसी गैर लड़के या लड़की के साथ अश्लीलता की पराकाष्ठा को पार करे तो क्या आप बर्दाश्त करेंगे या उसे इस फूहड़ता के लिए समझाइश देंगे, और आप अपनी अपरिपक्व संतान को ये सब देखते हुए अपनी आँख बंद करते हैं तो आपको सामाजिक मर्यादाओं के लिए गैर जिम्मेदार माना जायेगा..
मेरी राय से यदि विरोध ऊपर कही बात के लिए हो रहा है तो मैं भी इस से सहमत और यदि पूरी तौर पर महात्मा वेलेंटाइन के पर्व को लेकर फिरकापरस्ती और सियासत की जा रही है तो मैं ऐसी किसी भी गतिविधियों का घोर विरोधी हूँ.क्योंकि हम भी उसी देश में पैदा हुए हैं जहाँ हमारे बुजुर्गों ने लिखा है --- "ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय "
-विजय
23 टिप्पणियां:
जहाँ सारा ब्लॉग जगत वेलेंटाइन दे के पक्ष में खडा दिखता है, वहीं आपने उसका विरोध अत्यन्त तार्किक तरीके से किया है. ऐसी पोस्टें पढ़ने की अभिलाषा बनी रहती है. साधुवाद.
आदरणीय विजय जी
सादर कृतज्ञता आपने मेरे आत्म बल को ही नहीं
भोंडे ध्वज-वाहकों के विरोध में उभरते वैचारिक
आन्दोलन को बल दिया है
आभार
बाज़ार जो ना कराये सो कम । लेकिन मीडिया का भी कम हाथ नहीं । नेता बनना देश में आसान हो गया है । इस लिए कुछ लोग तोडफ़ोड कर सुर्खियां बटोरने की चाहत में ये सब करते हैं । नतीजा ....। तुम्हारी भी जय - जय हमारी भी जय - जय ,ना तुम हारे ना हम हारे । मीडिया को मसाला । चर्चा में रहने की चाहत रखने वालों को मौका । नेतागीरी में पैर जमाने वालों को ज़मीन और बाज़ार को जमकर व्यापार । ये एक साथ मिल जाता है प्रेम के पुजारियों की पूजा[????] करके । आपने सामाजिक मर्यादाओं को बेहतर तरीके से रखा ।
sab kuch to kah diya aapne ab bacha kya kahne ko.
aapke vichar bahut hi sargarbhit hain.
आप भी सही हैं डा॓. साहब पर क्या सरे राह प्रेम रोका जा सकता है जबकि हमारे धर्म का पूजा पाठ तक सरे राह याने रोड के बाज़ू की नालियों के ऊपर ही हो रहा हो। हा हा । भगवान जी इसी बात का बदला हमारी कौमों को लड़वा कर ले रहे हैं। ब्याह में अड़ंगे और रोड़े यदि इसी तरह होते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब घर घर की मर्यादाएँ सरे राह जिना करेंगी। मोहब्बत की भूख का भोजन सही वक्त पर मुहैया ना कराने का नतीजा है ये अराजकता। इसपर हम सबको अब युद्धस्तर पर विचार करना ही होगा। प्रेम के अनुचित दिखावे के आपकी तरह हम भी कतई पक्षधर नहीं। इस मामले पर ज़रूर हम आपके साथ हैं। मगर ये भी तो सच है के-
शशि को छूने उठे उदधिका ज्वार न बाँधा जाए रे साथी प्यार ना बाँधा जाए। अब क्या किया जाए सर ? हा हा । बहुत बहुत आभार आपका।
अहसास कब बंधा है किसी बंधन में.
बहुत सही.....समन्वयवादी दृष्टिकोण से युक्त आलेख।
आदरणीय भाइयो और बहनो !
सभी को अभिवंदन
* हेम जी ने कहा वेलेनटाइन डे का विरोध तार्किक है.
* गिरीश जी ने कहा की इस पोस्ट ने उनके आत्मबल और इस पर उभरते वैचारिक आन्दोलन को बल दिया है.
* सरिता जी ने नेता, मीडिया और बाज़ार को दोषी ठहराते हुए सामाजिक मर्यादाओं का समर्थन किया है.
* वंदना जी एवं संगीता जी ने भी इसे उचित माना .
* बवाल जी ने तो इस पोस्ट को और विस्तृत
आयाम देते हुए समाज में इस तरह अराजकता
के कारणों पर भी चिंतन की आवश्यकता पर
बल दिया है.
* समीर जी की बात सोलह आने सच है कि "अहसास कब बंधा है किसी बंधन में."लेकिन मेरा मानना ये नहीं है कि बंधन याने बलिष्ठ बंधन अथवा लकीर के फ़कीर होना. हर चीज का समय और परिवेश तो होना ही चाहिए. हम अपने अहसासों को कुछ नियंत्रण में तो रख
सकते हैं,अनुकूल परिस्थितियों के तक.यदि हम इतना भी नहीं पाये तो फ़िर इंसान और पशुओं में अन्तर ही क्या रह जायेगा? मैं समीरजी के विचार और बवालजी के पंक्ति "शशि को छूने उठे उदधिका ज्वार न बाँधा जाए रे साथी प्यार ना बाँधा जाए।" में मात्र आंशिक संशोधन की दरकार है.उम्मीद है मेरी इस वैचारिक अभिव्यक्ति को अन्यथा न लिया जाए, क्योंकि ये कुछेक फूहड़ पसंदों के विरोध में उठाया गया प्रश्न है .
- विजय
बहुत तर्कपूर्ण विरोध किया है आपने। 'प्रेम' का नाम लेकर लोग कुछ भी निष्कर्ष निकाल देते हैं।
हमारे देश में प्रत्येक नागरिक अपने-अपने ढंग से उत्सव मनाने के लिए पूर्ण स्वतंत्र हैं। सांस्कृतिक-क्षरण या धार्मिक कट्टरता की आड़ में संविधान प्रदत्त "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" का हनन नहीं होना चाहिए। "वैलेंटाइन-डे" का विरोध करने के नाम पर सरे आम अराजकता फैलाने और 'ला-आर्डर' अपने हाथ में लेने वालों पर रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) के अंतर्गत कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए जिससे अहसास हो कि भारत में अभी भी संविधान का राज है, गुंडों का नहीं !
दिवाकर जी
अभिवंदन
आपकी टिप्पणी निम्नानुसार है :-
" हमारे देश में प्रत्येक नागरिक अपने-अपने ढंग से उत्सव मनाने के लिए पूर्ण स्वतंत्र हैं। सांस्कृतिक-क्षरण या धार्मिक कट्टरता की आड़ में संविधान प्रदत्त "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" का हनन नहीं होना चाहिए। "वैलेंटाइन-डे" का विरोध करने के नाम पर सरे आम अराजकता फैलाने और 'ला-आर्डर' अपने हाथ में लेने वालों पर रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) के अंतर्गत कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए जिससे अहसास हो कि भारत में अभी भी संविधान का राज है, गुंडों का नहीं""
अब मैं अपनी बात कहता हूँ :-
मैं आपकी बातों से भी सहमत हूँ. बशर्ते प्रेमी-प्रेमिकायें मर्यादाएं न भूलें.
दिवाकर जी , साथ में ये भी आप जरूर बताएं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में आप फूहड़ता और सामाजिक मर्यादाओं को ताक पर रख कर सरे आम नंगा नाच करने वालों को संविधान की कौन सी धारा और कौन सा रासुका लगाने का प्रावधान करना चाहेंगे.
-विजय
हमाओ नाम सुई डाल लियो
अपनी लिस्ट में भैया जी
हम हेमराज नामदेव् "राज़ सागरी "
कहात हैं
aap ki baat se sahmat hun..
apani nai gazal pe aapka ehtaraam chahunga...........
arsh
बहुत अच्छा और बेहतरीन लिखा है
बधाई स्वीकारें
सार्थक अभिव्यक्ति.
लगा जैसे कोई मन की बात कह रहा हो.
प्यार करना अच्छा है पर उसका भोंडा प्रदर्शन
ही खराब है .
Vijay bhai ji
Bahut achchhe vichaar aaye blog par. mera kahana yah hai.
वैलेंटाइन डे
युवक - युवती
कोई हमें न रोको हम वैलेंटाइन डे मना रहे हैं।
जिन्दगी ऐसे भी जी जाती सबको बता रहे हैं।
सभ्यता के पैरोकार
आप सब खाक वैलेंटाइन डे मना रहे है।
शादी के बाद की चोंच पहले लड़ा रहे है।
युवक - युवती
कुछ नया करके ही जीवन आगे बढ़ता है।
घिसा - पिटा जीने को दिल नहीं करता है।
सभ्यता के पैरोकार
क्यों सभ्यता को मिटटी में मिला रहे हो।
बुनियादों की चूरें सरे आम हिला रहे हो।
युवक -युवती
एक बार ही मिलती है जीवन में जवानी।
वो भी क्या जवानी न हो जिसमें रवानी।
सभ्यता के पैरोकार
जवानी तो हम पर भी कभी आई थी।
मगर कभी ऎसी हरकत न दिखायी थी।
युवक -युवती
आपकी जलन को हम समझ पा रहे हैं।
आप देख के ख़ुद को नहीं रोक पा रहे है।
सभ्यता के परोकार
मान मर्यादाओं की खिल्ली उड़ा रहे हो।
हरकतों से पशु पक्षियों को हरा रहे हो।
युवक -युवती
लाइफ को हम मिलकर इंजॉय करेंगे।
टेंस जीवन में हम मिलकर जोय करेंगे।
किसी का दिल दुखाना मकसद नहीं है।
हद में रहते हैं कभी होते बेहद नहीं है।
सभ्यता के पैरोकार
परदे का जीवन यह परदे में ही रहने दो।
अपने इन्जोय्मेंट को हद में ही बहने दो।
तुम्हारे इन्जोय्मेंट के हम ख़िलाफ़ नहीं हैं।
हदें तो मंजूर हैं मगर बेहदें माफ़ नहीं हैं।
भाई जी अभिवादन!
सभी के विचार पढ़े ,आपकी तार्किक शब्द क्षमता की सराहना करती हूँ ....
मेरी राय से यदि विरोध ऊपर कही बात के लिए हो रहा है तो मैं भी इस से सहमत और यदि पूरी तौर पर महात्मा वेलेंटाइन के पर्व को लेकर फिरकापरस्ती और सियासत की जा रही है तो मैं ऐसी किसी भी गतिविधियों का घोर विरोधी हूँ.
मैं आपसे सहमत हूँ .मेरी शुभकामनाएं..........
swaal yahi hai ki dhayi aakher padhne ki koshish to koi kare...afsoos pyaar ke naam per foohdta failayi jaa rhi hai...
ekdam sahi. aap dono ki baaten sahi hain.
सिटीजन: विचार वीथी - उनको अंधविश्वास मानने के कारण चपत पड़ी
kripya avalokan vichaar preshit karne ka kasht kare.
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