लुटकर
चैन
हड़पकर
खुशियाँ
आतंकवादी
बढ़ रहे
और
हम हैं
कि
शान्तिमार्ग
पर
चल रहे
-किसलय
5 टिप्पणियां:
भई...!
vah vah !!
jayada shanti bhi thik nahi hoti
unko jawab dena bhi zaroori hai
आपने सच कहा है नीरा जी
"अतिसर्वत्रवर्जयेत" चाहे वो आतंकवाद हो या फ़िर शान्तिमार्ग.
एक श्लोक है ----
खलानां,कण्टकानां प्रतिक्रियाः द्विविधिः
उपानंगो मुखभंगो या दूर ते विसर्जनं
अर्थात खल(साँप या दुष्ट और काँटों से निपटने की दो विधियां हैं -
पहला या तो उनके मुँह को अपने जुटे से कुचल दो अथवा उन्हें दूर से ही छोड़ दो.लेकिन हम तो दोनों विधियों में से किसी एक पर भी अमल नहीं कर रहे हैं.
- विजय
सत्य वचन. बहुत सुन्दर.
आदरणीय समीर जी
अभिवंदन
आपने मेरे ब्लॉग पर पहुँच कर
मेरी रचना पढ़ी , अच्छा लगा
आभार
- विजय
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