सोमवार, 5 जनवरी 2009

आतंकवादी

लुटकर
चैन
हड़पकर
खुशियाँ
आतंकवादी

बढ़ रहे
और
हैं
कि
शान्तिमार्ग

पर
चल रहे

-किसलय

5 टिप्‍पणियां:

Girish Kumar Billore ने कहा…

भई...!
vah vah !!

नीरा ने कहा…

jayada shanti bhi thik nahi hoti
unko jawab dena bhi zaroori hai

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

आपने सच कहा है नीरा जी
"अतिसर्वत्रवर्जयेत" चाहे वो आतंकवाद हो या फ़िर शान्तिमार्ग.
एक श्लोक है ----
खलानां,कण्टकानां प्रतिक्रियाः द्विविधिः
उपानंगो मुखभंगो या दूर ते विसर्जनं
अर्थात खल(साँप या दुष्ट और काँटों से निपटने की दो विधियां हैं -
पहला या तो उनके मुँह को अपने जुटे से कुचल दो अथवा उन्हें दूर से ही छोड़ दो.लेकिन हम तो दोनों विधियों में से किसी एक पर भी अमल नहीं कर रहे हैं.

- विजय

Udan Tashtari ने कहा…

सत्य वचन. बहुत सुन्दर.

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

आदरणीय समीर जी
अभिवंदन
आपने मेरे ब्लॉग पर पहुँच कर
मेरी रचना पढ़ी , अच्छा लगा
आभार
- विजय