सोमवार, 5 जनवरी 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र. १७]

सदाचार, सौहार्द से, लिखो नया इतिहास ।
अभिमानी का जगत में, होता है परिहास ॥
-किसलय

2 टिप्‍पणियां:

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

नित इक दोहा पोस्ट कर करें भलो सो काज
किसलय से वे कवि बने, छंदों के समराठ !!
छंदों के सम्राट,करें नित नूतन कविताई
उल्टी सीधी बाई इनखों कबहूँ नै भाई
कह गिरीश कवि , जे मिर्ची सें तीखे...
सीधी बात सुनत विजय जी गुड से मीठे !!

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

गिरीश जी
निश्चित ही निरंतर लेखन से निखार आता है
और सृजन का विस्तार होता है
- विजय