मैं सुमन हूँ, महकता रहूँगा सदा.
रंग खुशियों के, भरता रहूँगा सदा..
फ़र्क करना कभी मैने सीखा नहीं,
गीत समता के लिखता रहूँगा सदा..
प्यार की आग में गर तपाया गया,
बन के कुंदन दमकता रहूँगा सदा...
भोर आई खुशी की तो बहका नहीं,
शाम-ए-गम में भी हँसता रहूँगा सदा..
इश्क़ करना सिखाया है जिसने मुझे,
उसकी जानिब ही बढ़ता रहूँगा सदा...
जिनकी खातिर भुलाया है सारा जहाँ,
नम्र " किसलय " की जग में ये पहचान है,
मैं शिखर पर ही उगता रहूँगा सदा...
4 टिप्पणियां:
मैं सुमन हूँ, महकता रहूँगा सदा.
रंग खुशियों के, भरता रहूँगा सदा..
बहुत बढ़िया सदा महकते रहे . बधाई
BHUT SUNDAR RACHNA HAI.
प्रिय किसलय जी /बहुत ही हौसला बढ़ने वाली रचना /हर फ़िक्र को धुएँ में उडाता चला गया की मानिंद /
महेंद्र मिश्र जी
शोभना जी
ब्रिज मोहन जी
प्रतिक्रया व्यक्त करने के लिए सभी का आभार.
- विजय
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